पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८५

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ईस हृदि मानस प्रकासित सहाई लसैं
अमल सरोज वरस्यामा के चरन हैं।

लछिराम ब्रह्ममट्ट थे और अमोड़ा. जिला बस्ती उनका जन्म स्थान या। उन्होंने महाराज मान सिंह अवध नरेश के दरवार में रह कर साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। उन्हीं से उन्होंने कविराज की पदवी भी प्राप्त की थी। वे उनके दरवार की शोभा तो थे ही. उनकी कृपा के कारण अवध प्रांत के अनेक राजाओं के यहां भी सम्मानित थे। उन्होंने अलंकार के कई ग्रन्थ लिखे हैं. जो उस राजा के नाम से ही प्रख्यात हैं जिसकी कीर्ति के लिये उनकी रचना हुई है-जैसे प्रताप रत्नाका लक्ष्मीश्वर रत्नाकर'. 'रावणेश्वरकल्पतम्', 'महेश्वर-बिलास' आदि । इन्होंने नायिका- भेद. अलंकार और अन्य कुछ विषयों पर भी ग्रन्थ लिखे हैं और इस प्रकार इनके ग्रन्थों की संख्या दस-पन्द्रह है । कविता-शक्ति इनमें अच्छी थी, इनकी रचना भी सरस होती थी। परन्तु अधिकतर इनकी कृतिमें अनुकरण मात्र है। मौलिकता खोजने पर भी नहीं मिलता। इनकी भाषा ब्रजभाषा है और उसमें माहित्यिक गुण भी हैं। कोमल और सरस शब्दविन्यास करने में भी वे दक्ष थे। कुछ पद्य दग्विये:---

१-भरम गँवावै झरबेरी मंग नीचन ते
कंटकित बेल केतकीन पे गिरत है।
परिहरि मालती सुमाधवी सभासनि
अधम अरूसन के अंग अभिरत है।
लछिराम सोभा सरवर में विलाम हेरि
मूरख मलिंद मन पल ना थिरत है।
रामचन्द्र चारु चरनांवुज विमारिदेस
बन बन बेलिन बबूर मैं फिरत है।
२- भानु बंस भूषन महीप राम चन्द्र बीर
रावरो सुजस फैल्यो आगर उमंग में ।