पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८६

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कवि लछिराम अभिराम दुनो सेस हूँसों
चौगुनो चमकदार हिम गिरि गंग मैं ।
जाको भट घेरे तासों अधिक परे हैं और
पँच गुनो हीरा हार चमक प्रसंग मैं।
चंद मिलि नौगुनो नछत्रन सों सौगुनो है ।
सहस गुनो भो छीर सागर तरंग मैं ।

३-सजल रहत आप औरन को देत ताप
बदलत रूप और बसन बरेजे मैं ।
तापर मयूरन के झुंड मतवाले माले
मदन मरोरै महा अरनि मरेजे मैं ।
कवि लछिराम रंग साँवरी सनेही पाय
अरज न मानै हिय हरष हरेजे मैं ।
गरजि गरजि बिरहीन के बिदारै उर
दरद न आवै धरे दामिनी करेजे मैं ।

गोविन्द गिल्ला भाई चौहान राजपूत थे। उनकी शिक्षा तो साधारण थी, किन्तु उन्होंने परिश्रम करके हिन्दी साहित्य में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था उन्होंने तीससे अधिक ग्रन्थों की रचनाकी है। जिनमें 'साहित्य-चिन्ता- मणि,' श्रृंगार-सरोजिनी' गोबिन्द हजारा' और विवेक-विलास' आदि बड़े ग्रन्थ हैं। इनमें श्रृंगार सरोजिनी' और 'साहित्य चिन्तामणि' गीति ग्रंथ हैं। ये काठियाबखड़ (गुजरात) के रहने वाले थे। फिर भी उन्होंने व्रजभाषामें रचना की है । भाषा टकसाली तो नहीं कही जा सकती । परन्तु यह अवश्य स्वीकार करना पड़ता है कि उसपर उनको अच्छा अधिकार था । उनकी रचना में सहृदयता है और कोमलता भी। परन्तु जैसी चाहिये वैसी भावुकता उसमें नहीं मिलती। कुछ पद्य देखिये:-