पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४८९

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घन ये नभ मंडल में छहरैं
घहरैं कहुँ जाय कहू ठहरें।
४-चंचला चपल चारु चमकत चारों ओर
झुमि झुमि धुरवा धरनि परमत है।
सीतल समीर लगै दुखद बियोगिन
सँयोगिन समाज सुख साज मरमत है।
कहै परताप अति निविड़ अंधरी माँहि
मारग चलत नाहिँ नेकु दरमत है।
झुमड़ि झलानि चहुं कोद ते उमड़ि आज
धाराधर धारन अपार बरमत है ।
५.--महाराज रामराज रावरो सजत दल
होत मुख अमल अनंदित महेम के ।
सेवत दरीन केते गब्बर गनीम रहैं।
पन्नगपताल त्योंही डरन खगेस के ।
कहै परताप धरा धॅंमत चमत कमममत
कमट पीठि कठिन कलेम के ।
कहरत कोल हहरत हैं दिगीम दम
लहरत सिंधु थहरत फन सेम के ।

इस शताब्दी के प्रबंध कागे में महागज ग्घुगन सिंह का नाम विशेष उल्लेख-योग्य है । गोकुल नाथ की चर्चा पहले में कर चुकाहू । वे भी बहुत बड़े प्रबंधकार इस शताब्दी के हैं। परन्तु उनको कृति में दो और कवियों का हाथ है। वे प्रसिद्ध गीतिग्रन्थकार भी हैं। इसलिये मैने उनकी चर्चा रीति ग्रंथकारों में ही की है। महाराज रघुराज सिंह की जितनी रचनायें हैं सब उन्हीं की कृतियां हैं और उनमें प्रबंध ग्रन्थों की संख्या