पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४९०

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अधिक है । इसलिये मैं उन्नीसवीं शताब्दी का सर्व श्रेष्ठ प्रबंधकार उन्हीं को मानता हूं। रीवां राज्य वंश वैष्णव है। उसकी धम्र्मृ पगयणता प्रसिद्ध है। महाराज रघुराज सिंह के पितामह महाराज जै सिंह बड़े भक्त और सच्चे वैष्णव थे : उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने पुत्र विश्वनाथ- सिंह को अपना राज्य भार सौंप दिया था। भागवतृभजन में हो वे रत रह- ते थे और भक्ति-सुख को राज्य-सुख से उच्च मानते थे । वे बड़े सहृदय कवि भी थे. लगभग अठारह ग्रन्थों की उन्हों ने रचना की थी। उनमें में हरिचरित चंद्रिका. हरेचरितामृत, कृष्णनंगिणी आदि अधिक प्रसिद्ध हैं। निर्णयसिद्धान्त' और 'वेदान्त प्रकाश' भी उनके सुन्दर ग्रन्थ हैं। उनकी रचना बड़ी ललित होती थी और कोमल एवं सग्स पदविन्यास उनकी रचना का प्रधान गुण था। उन्हों ने अधिकतर प्रबंध ग्रन्थ ही लिखे ओर वह आ- दर्श उपस्थित किया जिसका अनुकरण बाद को उनके पुत्र महाराज विश्व- नाथ सिंह और पौत्र महाराज रघुराज सिंह ने बड़ी श्रद्धा के साथ किया। उनकी भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है । परन्तु उसमें अवधीके शब्द भी प्रायः आते रहते हैं। इनकी अधिकांश रचना दोहा और चौपाइयों में है। उनके कुछ पद्य देग्विये:-

१-परसि कमल कुवलय बहत, वायु ताप नसि जाइ।
सुनत बात हरि गुननयुत, जिमि जन पाप पराइ।
२-वन वाटिका उपवन मनोहर फूल फल तरू मूल से ।
सर सरित कमल कलाप कुवलय कुमुद बन बिकसे लसे।
सुख लहतयों फल चखत मनुपोयत मधुप सों नीतिसों ।
मन मगन ब्रह्मानंद रस जोगीस मुनिगन प्रीति सों ।
३--कूजि रहे खग कुल मधुप, गूॅ़्ंजि रहे चहुं ओर ।
तेहि बन लै गोगन सकल प्रविसे नंद किसोर ।

उनके पुत्र महाराज विश्वनाथसिंहने भी अनेक ग्रन्थाकी रचना की है ! उन्होंने कबीरके बीजक और विनय पत्रिका को भी सुन्दर टीकायें लिखी है।