पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४९८

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ऐसो ठान ठानै तो बिनाहूं जंत्र मंत्र किये
मांप के जहर को उतारै तो उतरि जाय ।
ठाकुर कहत कछु कठिन न जानौ मीत
साहस किये ते कहौ कहाना सुधरि जाय।
चारि जने चारि हूं दिसा ते चारों कोन गहि
मेरुको हलाय कै उखारै तो उखरि जाय ।
३-हिलिमिलि लीजिये प्रवीनन ते आठो जाम
कीजिये अराम जासो जिय को अराम है।
दीजिये दरस जाको देखिबे को हौस होय
कीजिये न काम जासो नाम बदनाम है।
ठाकुर कहत यह मन में विचारि देखो
जस अपजम को करैया सब राम है।
रूप से रतन पाय चातुरी से धन पाय
नाहक गँवाइबो गॅंंवारन को काम है।
४-ग्वालन को यार है मिॅंगार सुभ सोभन को
साँचो सरदार तीन लोक रजधानी को।
गाइन के संग देखि आपनो बखत लेखि
आनॅंद विसेख रूप अकह कहानी को।
ठाकुर कहत साँचो प्रेम को प्रसंगवारो
जालखि अनंग रंग दंग दधिदानी को
पुत्र नंद जी का अनुराग ब्रजबासिन को
भाग जसुमति को मुहागराधारानी को
५-कोमलता कंज ते गुलाब ते सुगंध लैके
चंद ते प्रकास गहि उदित उॅंजेरो है ।