पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४८८ )

२-यों बिभाति द्सनावली ललना बद्न मँझार ।
पति को नातो मानि कै मनु आई उडुनार ।
३- सखि सँग जाति हुती सुती भट भेरो भोजानि ।
सतरौंही भौंहनि करी बतरौंही अँखियाँनि।
४- सतरौहैं मुख रुख किये कहै रुखौहें बैन ।
रैन जगे के नैन ये सने सनेह दुरैं न ।
५- खंजन कंजन सरि लहैं बलि अलिको न बखानि।
एनी की अँखियानि ते ए नीकी अँखियानि ।

पजनेस एक प्रतिभाशाली कवि माने जाते हैं । इनका जन्म-स्थान । पन्ना कहा जाता है। और परिचय के विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं । इन्होंने 'मधुर प्रिया' और 'नखशिख' नामक दो ग्रंथ बनाये थे। किंतु दोनों ग्रंथ अमुद्रित हैं। इनकी स्फुट रचनायें कुछ पायी जाती हैं. जिनसे ज्ञात होता है कि उनको सँस्कृत और फ़ारसीका भी अच्छा ज्ञान था। इनकी रचनाओं की मुख्य भाषा ब्रजभाषा है, किंतु उनमें अन्य भाषाओं के शब्द अधिकता से पाये जाते हैं, इस विषय में वे अधिक स्वतंत्र हैं। इनकी रचनाओं में अकोमल शब्दों का प्रयोग भी अधिक मिलता है। परुपा वृत्ति इन्हें अधिक प्यारी है। जो स्फुट पद्य मिले हैं. वे सब श्रृंगार रस के ही हैं। अवध नेरश महाराज मानसिंह इनकी रचनाओं को लोहे का चना कहते थे। तो भो यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने सरस पद-विन्यास किया ही नहीं। दोनों प्रकार के दो पद्म नीचे लिखे जाते हैं:-

१-छहरै छबीली छटाछूटि छिति मंडलपै
उमँग उॅंजेरो महा ओज उजबक सी।
कवि पजनेस कंज मंजुल मुखी के गात
उपमाधिकात कल कुंदन तबक सी ।