पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५२

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थी वह मागधी कहलाई, किन्तु काशी और कोशल प्रदेश की भाषा अर्द्ध- मागधी कही गई है । अर्द्धमागधी शब्द ही बतलाता है, कि इस भाषा की शब्द सम्पत्ति इत्यादि का अख़्श मागधी है । यहाँ प्रश्न यह होगा कि दूसग अद्धांश क्या है ? इसका उत्तर क्रमदीश्वर यह देते हैं, 'महाराष्ट्री मिश्राद्ध मागधी, अर्थात जिस मागधी में महागष्ट्री शब्दों का मिश्रण हो गया है, वह अर्द्धमागधी है। किन्तु मारकण्डेय यह कहते हैं-

“शौरसेन्याविदृरत्वादियमेवार्धमागधी” अर्थात शौरसेनी के सन्निकट होने के कारण इसका नाम अर्द्धमागधी है। प्रयोजन यह कि जिस मागधी पर शौरसेनी का प्रभाव पड़ गया है, वह अर्द्धमागधी है । इन दोनों सिद्धान्तों में प्रथम सिद्धान्त के पोषक अधिक लोग हैं, और वे कहते हैं कि अर्द्धमागधी पर अधिक प्रभाव महागष्ट्री का ही है। मागधी भाषा में यदि वौद्धों के धर्मग्रन्थ हैं, तो अद्धमागधी में जैनों के। वह यदि वुद्धदेव के प्रभाव से प्रभावित है, तो यह महावीर स्वामी के गौरव से गौरवित । कहा जाता है कि अशोक के समय में यदि मागधी गजभाषा होने कारण विशेष सम्मानित थी, तो अद्धमागधी का समादर भी कम न था, पूर्ण सम्मान का अद्धांश उसको भी प्राप्त था। अशोक के स्तम्भों पर पाली अथवा मागधी को यदि स्थान दान किया गया है, तो अर्द्धमागधी भी इस सम्मानसे वंचित नहीं हुई, अनेक शिलालेख अद्धमागधी में लिखे पाये गये हैं। महाराष्ट्री भी देशपरक नाम है, और यह भी दुसरी प्राकृत है। परन्तु स्वर्गीय पण्डित बदरीनारायण चौधरी ने अपने व्याख्यान में लिखा है

"महाराष्ट्री शब्द से प्रयोजन दक्षिण देश से नहीं किन्तु भारतरूपी महागष्ट्र से है" 'प्राकृत प्रकाशकार' वररुचि भी इसी विचार के हैं । किसी समय यह प्राकृत देशव्यापिनी थी, कहा जाता है महाराष्ट्र शब्द से ही. महाराष्ट्री का नामकरण हुआ है। कुछ लोगों ने सर्व प्राकृतों में इसी को प्रधान माना है, क्योंकि प्राकृत भाषा के व्याकरण रचयिताओं ने उसी के विषयमें विशेष रूप से लिखा है। प्रायः व्याकरणों में देखा जाता है कि अन्य प्राकृतों के कुछ विशिष्ट नियमों को लिखकर शेष के विषय में लिख दिया