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'हिन्दू और हिन्दुस्तान' के विषय में क्या कहते हैं :—
चहहु जो साँचो निज कल्यान।
तो सब मिलि भारत संतान।
जपो निरंतर एक ज़बान।
हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्थान।
तबहिं सुधरि है जन्म निदान।
तबहिं भलो करि है भगवान।
जब रहि है निसि दिन यह ध्यान।
हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान।
अपनो 'तृप्यताम्' नामक कविता में वे किस प्रकार अपने जातीय दुःख को प्रकट करते हैं, उसे भो सुनिये :—
केहि विधि वैदिक कर्म होत
कब कहा बखानत ऋक यजु साम।
हम सपने हूं में नहिं जानैं
रहैं पेट के बने गुलाम।
तुमहिं लजावत जगत जनम ले
दुहुँ लोकन मे निपट निकाम।
कहैं कौन मुख लाइ हाय
फिर ब्रह्मा बाबा तृप्यताम्।
अपने बैसवाड़ी बोलचाल में देखिये, गोरक्षा के विषय में क्या कहते हैं :—
गैया माता तुम काँ सुमिरौं
कीरति सब ते बड़ी तुम्हारि।