पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५२२

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दाढ़ी नाक याकमाँ मिलिगै
बिन दाँतन मुंहु अस पोपलान।
दढ़िही पर बहि बहि आवति है
कबौं तमाखू जो फाँकन।
बारौ पकिगै रीरौ झुकिगै
मूंडौ सासुर हालन लाग।
हाथ पाँव कछु रहे न आपन।
केहि के आगे दुख रवावन।

उनकी एक ग़ज़ल देखिये :—

वो बदख़ू, राह क्या जाने वफ़ा की।
अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की।
मियां आये हैं बेगारी पकड़ने,
कह देती है शोख़ी नक़शे पा की।
पुलिसने और बदकारों को शहदी,
मरज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की।
उसे मोमिन न समझो ऐ बिरहमन,
सताये जो कोई ख़िलक़त ख़ूदा की।
विधाता ने याँ मक्खियां मारने को,
बनाये हैं ख़ूशरू जवां कैसे कैसे।
अभी देखिये क्या दशा देशकी हो,
बदलता है रंग आसमां कैसे कैसे।

एक भजन भी देखिये :—

माया मोह जनम के टगिया
तिनके रूप भुलाना।