यद्यपि किसी किसी के कुछ पद्य बड़े सुन्दर हैं। द्विवेदीजो की भी कोई कोई रचना बड़ी ही हृदय-ग्राहिणी है, एक पद्य देखिये :—
१— पिया हो कसकत कुस पग बीच।
लखन लाज सिय पिय सन
बोली हरुए आइ नगीच।
सुनि तुरंत पठयो लखनहिं
प्रभु जलहित दूरि सुजान।
लेइ अंक सिय जाेवत कुस
कन धाेवत पग अँसुआन।
बार बार झारत कर सों रज
निरखत छत बिललात।
हाय प्रिये मान्यों न कह्यो
लखु नहि बन बिचकुसलात।
सहस सहचरी त्यागि सदन
मधि सासु ससुर सुखकारि।
हट करि लगि मो संग सहत
तुम हाहा यह दुख भारि।
कहत जात यों प्रभु बहु बतियां
तिया पिया की छांह।
देइ गल बहियाँ चलों बिहँसि
कहि यह सुख नाथ अथाह।
ताे भी यह उचित नहीं ज्ञात हुआ कि उनको पद्य-विभाग में स्थान दिया जाय। क्योंकि उल्लेख योग्य पद्य-ग्रंथों के रचयिताओं को ही उसमें अब तक स्थान मिलता आया है। बाबू हरिश्चन्द्र के स्वर्गारोहण