पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५३३

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रूप में खड़ी बोली में सर्व प्रथम रचना करने का श्रेय पं० श्रीधर पाठक ही को प्राप्त है।

खड़ी बोली और ब्रजभाषा में क्या अन्तर है. यहाँ यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है। यहां यह भी ध्यान रखना चाहिये कि ब्रज भाषा के विरोध के अन्तर्गत अवधी भाषा भी है। बिवाद के समय खड़ी बोली के सामने ब्रजभाषा हो इसलिये रखी गयी कि जिस समय आन्दोलन आरम्भ हुआ उस समय व्रजभाषा ही सर्वोत्तम समझो जाती थी और उसी का व्यापक बिस्तार था, अवधी लगभंग साहित्य संसार से उठ चुकी थी। कमी कभी कोई उसका निस्संदेह स्मरण कर लेता था। वास्तव बात तो यह है कि दोनों का बहुत बड़ा सम्बन्ध प्राकृत भाषा से है। दोनों अनेक अंशों में प्राकृत भाषा के ढंग में ढली हुई हैं । दानों में प्राकृत भाषा के कई शब्द बिना परिवर्तित हुये पाये जाते हैं। दोनों का बहुत बड़ा सम्बन्ध बोल चाल की भाषा से है। परन्तु खड़ी बोलचाल जिस रूप में गृहीत है उस रूप में न तो वह जनता को बोलचाल को भाषा से अपेक्षित मात्रा में सम्बन्ध रखती है न प्राकृत भाषा से। और यह बहुत बड़ा अन्तर ब्रजभाषा ओर खड़ी बोली में है। इस बात को और स्पष्ट करने के लिये मैं दोनों की विशेषताओं पर विशेष प्रकाश डालना चाहता हूं।

ब्रजभाषा और अवधी की विशेषतायें मैं पहले बता चुका हूं। उनसे आप लोग अभिज्ञ हैं। अब में बड़ी बोली की विशेषताओं को बतलाऊँगा जिससे उनके परम्पर अंतर का ज्ञान यथातथ्य हो सके। हिन्दी भाषा के अब तक जितने व्याकरण बने हैं उनका सम्बन्ध बड़ी बोला से ही है। न तो कभी अजभाषा और अवबी का व्याकरण बना और न इधर किसी की दृष्टि गई। आज कल कुछ लोगों का ध्यान इधर आकर्षित है । नहीं कहा जा सकता कि यह कार्य होगा या नहीं । बड़ी बोली भाग्यवान है कि गद्य में स्थान मिलते ही उसके एक क्या कई व्याकरण बन गये । मुझको व्याकरण-सम्बन्धी सबबाते यहां नहीं लिवनी हैं। और न ब्रजभाषा अवधी और खड़ी बोलीके कारक चिन्हों. सर्वनामो और धातु-सम्बन्धी नाना रूपा के पारस्परिक अन्तरा का विशद रूप म दिखलाना इष्ट ह। मैं यहा