पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५०

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उनको 'काश्मीर-सुखमा' नाम की पुस्तिका उनकी समस्त रचनाओं में सर्वोत्तम है, किन्तु उसकी भाषा व्रजभाषा है। उनके जीवन का अन्तिम समय भी व्रजमाषा की सेवा ही में बीता। यदि वे इस स्वाभाविक प्रेम के जाल में न फँसते और दो एक मौलिक ग्रन्थ खड़ी बोल चाल के पद्यों में और लिख जाते तो उस समय वह कुल और अधिक उन्नत हो जाती। फिर भी उन्हों ने पहले पहल जितना किया उसके लिये वे चिर स्मरणीय हैं और खड़ी बोली कविता का क्षेत्र उसके लिये उनका कृतज्ञ है।

पाठक जी के उपरान्त खड़ी बोली के कविता-क्षेत्र में हमको पं° नाथूराम शङ्कर शर्मा का दर्शन होता है। ये व्रजभाषा के ही कवि थे और उसमें सुन्दर और सम्म रचना करने थे। परन्तु सामयिक मचि का इन पर भी प्रभाव पड़ा और ये खड़ी बोली में ही कविता लिखने लगे। शर्मा जी आर्य समाजी विचार के हैं। आर्य समाज की कट्टरता प्रसिद्ध है। शर्मा जी भी अपने विचार के कटर हैं। इनकी यह कट्टरता इनकी रचना में ही नहीं, इनके शब्दों में भी फूटी पड़ती है। आर्य-समाज के सिद्धान्त के अनुसार समाज संशोधन सम्बन्धी विचार प्रट करने के लिये इनको खड़ी बाेली उपयुक्त ज्ञात हुई। इस लिये इनका उसकी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था। इनके धार्मिक विचारों में भी उग्रता है। इस सूत्र से भी इनको खड़ी बोली की कविता करनी पड़ी क्योंकि उस समय आर्य समाज को जनता में अपना सिद्धान्त प्रचार करने के लिये व्रजभाषा से खड़ी बोली ही उन्हें अधिक प्रभाव जनक जान पड़ी। फिर भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि इनकी खड़ी बाली की रचना में व्रजभाषा का पुट बराबर आवश्यकता से अधिक रहा और अब तक है। इन्हों ने छोटी मोटी कई पुस्तकें बनाई हैं किन्तु इनकी छपी हुई चार पुस्तकं अधिक प्रसिद्ध है। इनके नाम ये हैं — शङ्कर सरोज, अनुराग रत्न, गर्भ रण्डारहस्य और वायस विजय। इनकी रचना की विशेषता यह है कि उसमें समाज संशोधन, मिथ्याचार खंडन और परम्परागत रूढ़ियों का निराकरण उत्कट रूप में पाया जाता है। इनसे पहले इस ढंग की रचनाओं का अभाव था। समय ने इनके ही द्वारा इस अभाव की पूर्ति करायी। खड़ी बोल चाल में