सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५३८)


एक पद्य ऐसा देखिये जिसमें खड़ी बोली और ब्रजभाषा दोनों का गहरा रंग है :—

३— ताकत ही तेज न रहैगौ तेजधारिन में
मंगल मयंक मंद पीले पड़ जायेंगे ।
मीन बिन मारे मर जायँगे तड़ागन में
डूबडूब शंकर सरोज सड़ जायँगे ।
खायगो कराल काल केहरी कुरंगन को
सारे खंजरीटन के पंख झड़ जाँयगे ।
तेरी अँखियान सों लड़ैंगे अब और कौन
केवल अड़ीले दृग मेरे अड़ जायँगे।

एक पद्य डाँट फटकार का भी देखियें :—

४— ईश-गिरिजा को छोड़ यीशु गिरजा में जाय
शंकर सलाेने मैन मिस्टर कहावेंगे ।
बूट पतलून कोट कमफ़ाट टोपी डाटि
जाकेट की पाकेट में बाच लटकावेंगे ।
घूमेंगे घमंडी बने रंडी का पकड़ हाथ
पियेंगे बरंडी मीट होटल में खावेंगे।
फारसी की छार सी उड़ाय अँगरेज़ी पढ़ि
मानाे देवनागरी का नाम ही मिटावेंगे।

इनकी एक रचना बिचित्र भाषा भाव की देखिये :—

बाबा जी बुलाये बीर डूंगरा के डोकरा ने
जैमन को आसन बछेल के बिछाये री।
ओंड़े ऊदला महेरी के सपोट गये झार
गये झोर रोट झार पेट भरे खाये री।