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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५५

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आजन्म हिन्दी भाषा की सेवा की ओर जबतक जिये उसको अपनो सरस रचनाओं से अलंकृत करते रहे। आप बड़े सहृदय कवि और वक्ता थे, धर्म प्रेमी भी थे। ब्रह्मावर्त्त सनातनधर्म मण्डल की स्थापना भी आप हो ने की थी। 'काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्' के आप प्रत्यक्ष प्रमाण थे। उन्होंने रसिक वाटिका नामक एक मासिक पत्रिका भी निकाली थी। पीछे से धर्म कुसुमाकर नामक एक मासिक पत्र भी प्रकाशित किया। आपने व्रजभाषा में अनेक सुन्दर रचनायें की हैं। उनमें से कुछ पुस्तकाकार भी छपी हैं। उन्होंने मेघदूत का 'धाराधर धावन' नाम से बड़ा सुन्दर और सरस अनुवाद किया है। उनका 'चन्द्र कला भानुकुमार' नाटक भी अच्छा है। उनके कुछ पद्य नीचे दिये जाते हैं :—

वर्षा आगमन।

१— सुखद सीतल सुचि सुगन्धित पवन लागी बहन।
सलिल बरसन लगो बसुधा लगी सुखमा लहन।
लहलही लहरान लागीं सुमन बेली मृदुल।
हरित कुसुमित लगे झूमन बृच्छ मंजुल विपुल।
हरित मनि के रंग लागी भूमि मन को हरन।
लसति इन्द्र वधून अवली छटा मानिक बरन।
बिमल बगुलन पाँति मनहुँ विमाल मुक्तावली।
चन्द्रहाँस समान-दमकति चंचला त्यों भली।
नील नीरद सुभग सुरधनु बलित सोभाधाम।
लसत मनु बनमाल धारे ललित श्री घनस्याम।
कूप कुंड गंभीर सर वर नीर लाग्यो भरन।
नदी नद उफनान लागे लगे झरना झरन।
रटत दादुर त्रिविधि लागे रुचन चातक बचन।
कूक छावत मुदित कानन लगे केकी नचन।