पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५७

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चौथा-प्रकरण

वर्तमान काल

यह वर्तमानकाल बीसवीं ईस्वी शताब्दी के आदि में ही प्रारम्भ होता है। हिन्दी भाषा के लिये इसको स्वर्णयुग कह सकते हैं। इस काल में जितना वह विस्तृत हुई. फूली फली उन्नत बनी, वह उल्लेखनीय है । कोई वह समय था जत हिन्दो भापा के विद्वान इने गिने थे और उसको एक साधारण भाषा समझ कर हिन्दी संसार के प्रतिष्ठित पुरुपों की दृष्टि भी उसकी ओर आकर्पित होते संकुचित होनी थी। किंतु वर्तमान काल में संस्कृत और अँगरेजी के उच्च कोटि के विद्वान ही क्या उसके पुनीत चरणों पर भारतवर्ष के वे महापुरुप भी पुष्पाञ्जलि अर्पण करते दृष्टिगत होते हैं जो लोकमान्य और देश-पृज्य है । मेग अभिप्राय महर्पिकल्प पं० मदन-मोहन मालवीय और महात्मा गांधी से है । मालवीय जो चिरकाल से हिन्दी भाषा के लिये वद्ध-परिकर और उत्सर्गीकृत--जीवन हैं। वर्तमान काल में उनको महात्मा गांधी की सहयोगिता भी प्राश हो गयी है, जिससे हिन्दी भाषा की समुन्नति और मौन्दय्य वृद्धि के लिये मणि-कांचन-योग उपस्थित हो गया है। गष्ट्रीयता के भावों के साथ देश में एक भापा का प्रश्न भी छिड़ा। इस आन्दोलन ने हिन्दी भाषा को उम उचसिंहासन पर बेठाला जिसकी वह अधिकारिणी थी। आजदिन देश के बड़े बड़े नेता तथा अधिकतर सर्वमान्य विद्वान मम्मिलित स्वर में यही कह रहे हैं कि गष्टमापा यदि हो सकती है तो हिन्दी भाषा । इस विचार में उसमें एक नवीन स्फूर्ति आगयी है और उसके प्रत्येक विभागों में यथेष्ट उन्नति होती दृष्टिगत हो रही है। भारतवर्ष का कोई प्रान्त ऐसा नहीं है जहाँ इस समय हिन्दी भाषाकी पहुँच न हो और जहाँ से हिन्दी भाषा का कोई न कोई पत्र अथवा पत्रिका न निकल रही हो। उसके प्रसार का भो यथेष्ट यत्न किया जा रहा है और उसके प्रत्येक विभागों के भाण्डार की वृद्धि में लोग मयत्न हैं। इस समय मेरे सामने उसके पद्य-विभाग का विषय है। मैं देखना चाहता हूं कि