फिर दोसी ने भी नाम अमर अपना बनाया।
जब फ़ारसी बीरों का सुयश गाके सुनाया।
सब बीर किया करते हैं सम्मान कलम का।
एक पद्य व्रजभाषा का देखिये।
सघन लतान सों लखात बरसात छटा
सरद सोहात सेत फूलन की क्यारी में।
हिमऋतु काल जल जाल के फुहारन में
शिशिर लजात जात पाटल कतारी में।
सौरभित पौन ते बसन्त दरसात नित
ग्रीषम लौं दुख दहक्यो है चटकारी में।
दीन कवि सोभाषट ऋतु की निहारी सदा
जनक कुमारी की पियारी फुलवारी में।
२ पं° गयाप्रमाद शुकु वर्तमान कवियों में विशेष स्थानके अधिकारी हैं। आप की राष्ट्रीय रचनायें बड़ी ओजस्विनी हैं और खड़ी बोली के क्षेत्र में आप का यही उल्लेखनीय कार्य है। खड़ी बोली की कविता में आपने जातीयता का वह राग अलापा है, जिसकी ध्वनि हृदयों में आज का संचार करती रहती है। आप की गष्ट्रीय कवितायें त्रिशूल नामसे निकली हैं। आपने अपने 'सनेही' उपनाम से जो रचनायें की हैं वे बड़ी ही सरस और मधुर हैं। आप व्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों ही भाषाओं में रचना करते है। किंतु आप की प्रसिद्धि खड़ी वाली की ग्चनाओं के लिये ही है। क्योंकि उनकी पत्नियां प्रायः बड़ी सजीव होती हैं! आप 'सुकवि' नामक एक मासिक पत्रिका भी निकालते हैं। उनकी दोनों भाषाओं की कुछ कवितायें नीचे लिखी जाती हैं।
वह बेपरवाह बने तो बने
हमको इसकी परवाह का है।