पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५६८

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वह प्रीति का तोड़ना जानते हैं
ढँग जाना हमारा निबाह का है।
कुछनाज़ जफ़ा पर है उनको
तो भरोसा हमें बड़ा आह का है।
उन्हें मान है चन्द्र से आनन पै
अभिमान हमें भी तो चाह का है।
दाह रही दिल में दिन द्वैक बुझी
फिर आपै कराह नहीं अब।
मानि कैरावरे रूरे चरित्र गुन्यो
हिय में कि निबाह नहीं अब।
चाहक चारु मिले तुमको चित
माँहि हमारे भी चाह नहीं अब।
जो तुममें न सनेह रहा हमको भी
नहीं परवाह रही अब।
रावन से बावन बिलाने हैं बचे न एक
चाल नहिं काल से किसी की चल पाई है।
कौरव कुटिल कुल कुल के कुठार भये
कृष्ण जू से कंस की न दाल गल पायी है।
हाय की हवा सों जल गये हैं जवन जूथ
हासिल हुकुम पै न लागे पल पायी है।
याते बल पाय फल पाय लेहु जीवन को
दीन कलपाय कही कौने कलपाई है।
चित्त के चाव चोचले मन के
वह बिगड़ना घड़ी घड़ी बन के।