पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५८०

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१०--पं० रूपनारायण पाण्डेय हिन्दी-संसार के प्रसिद्ध अनुवादक हैं। आप ने जितने ग्रन्थों का अनुवाद किया है उनकी संख्या पचास से भी ऊपर है । इस कार्य में ये सिद्ध-हस्त हैं और ख्याति प्राप्त सहृदय हैं,इस लिये सरस कविता भी करते हैं। आप की कुछ कविता- पुस्तकें छपी भी हैं और उनकी यथेष्ट प्रशंसा भी हो चुकी है। पहले ये ब्रजभाषा में कविता करते थे,बाद खड़ी बोली के क्षेत्र में आये और कीर्ति भी पायी । उनकी खड़ो बोली को कविता में विशेषता यह है कि उसमें भावुकता तरङ्गायित मिलती है। उनका शब्द-विन्यास भो सुन्दर होता है जिसमें एक मधुर लचक पायी जाती है। कुछ पद्य व्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों के नीचे दिये जाते हैं:-

सारद विसारद बिसारद को पारद
विरंचि हरि नारद अधीन कहियत है।
मण्डित भुजा मैं बर बीना है प्रवीना जू के
एक कर अभय बरादि गहियत है।
चहियत पद अवलम्ब अम्ब तेरे
पाय हरख कदम्ब ना बिलंब सहियत है।
हरन हजार दुख सुख के करन चारु
चरन सरन मैं सदा ही रहियत है।
बुद्धि विवेक की जोति बुझी
ममता मद मोह घटा घन घेरी।
हैं न सहारो अनेकन हैं।
ठग पाप के पन्नग की रहै फेरी
त्यों अभिमान को कूप इतै ।
उतै कामना रूप सिलान की ढेरी।