पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५८२

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पर प्रयोग करन में संकोच नहीं करते। उन्हों ने अपनी कविताओं के संग्रह का नाम 'माधवी' रक्खा है। मै कहूंगा, उनकी कविता-पुस्तक का यह सार्थक नाम है। वास्तव में वह मधुमयी है। उनके कुछ पद्य नीचे दिये जाते हैं:-

बार बार मुख धनियों का नहीं देखता तू
झूठी चाटुकारी नहीं उनको सुनाता है।
सुनता नहीं तू कटु वाक्य अभिमान सने
पीछे भी कदापि उनके नहीं तू धाता है।
खाता है नवीन तृण तो भी तू समय में ही
सोता सुखसेही जब निद्राकाल आता है।
कौन ऐसा उग्र तप तूने था किया कुरङ्ग
जिस से स्वतंत्रता समान सुख पाता है।
इस नादान निगोड़े मन को
किस प्रकार समझाऊँ।
इसकी उलझन सुलझ न सकती
मैं कैसे सुलझाऊँ।
स्वयं मुझे कुछ नहीं सूझता
क्या मैं इसे सुझाऊँ।
बिना स्वाति जल के चातक की
किस विध प्यास बुझाऊँ।
होकर भी मैं बिमन कहाँ
तक मनकी बात छिपाऊँ।
मन जिसके हित विकल हो
रहा उसे कहाँ मैं पाऊँ।