पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५६९)

है यह मचल रहा बालक सा
किस विधि मैं बहलाउँ
इसके लिये कहाँ से मैं
वह चन्द्र खिलौना लाऊँ।

१२- मैं सुभद्रा कुमारी चौहान की चर्चा यहां गौरव पूर्वक करता हूं। इसलिये कि उन्होंने ही स्त्री-कवियों में खड़ी बोली की रचना करने में सफलता पाई। अभी हाल ही में सुन्दर कृतिके लिये ५००) का सकसेरिया पुरस्कार साहित्य-सम्मेलन द्वारा उन्हें प्राप्त हुआ है। स्त्री सुलभ भाव उनकी कविताओं में बड़ी सुन्दरतासे अंकित पाये जाते हैं। सामयिकताका विकास भी उनमें यथेष्ट देखा जाता है। उनकी भाषा अधिकांश सरल होती है, परन्तु सरस और मधुर। वाच्यार्थ उनका स्पष्ट है और भाव प्रकाशन-प्रणाली सुन्दर। वे क्षत्राणी हैं, इसलिये आवेश आने पर उनके हृदय से जो उद्गार निकलता है उनमें सच्ची वीरता झंकृत मिलती है। कुछ पद्य नीचे दिये जाते हैं:

थीं मेरा आदर्श बालपन से
तुम मानिनि राधे।
तुम सी बन जाने को
मैंन व्रत नियमादिक साधे।
अपने को माना करती थी
मै बृषभानु किशोरी।
भाव गगन के कृष्णचन्द्र की
मैं थी चारु चकोरी।
बचपन गया नया रँग आया
और मिला यह प्यारा।