१—सब से पहले मेरी दृष्टि बाबू जयशंकर प्रसाद पर पड़ती है। आप ने छायावाद के कई ग्रन्थ लिखे हैं। पहले आप भी ब्रजभाषा में ही कविता करते थे। खड़ी बोली के आन्दोलन के समय खड़ी बोली में कविता करने लगे। अब छायावाद कविता का पथ प्रशस्त करने में दत्तचित्त हैं। आप की रचना सुन्दर और भावमयी है, भाषा भी भावानुगामिनी है। आप के कुछ पद्य नीचे लिखे जाते हैं:-
१- भूलि भूलि जात पद कमल तिहारो कहो
ऐसी नीति मूढ़ मति कीन्ही है हमारी क्यों।
धाय के धंसत काम क्रोध सिंधु संगम में
मन की हमारे ऐसी गति निरधारी क्यों।
झूठे जग लोगन में दौरि के लगत नेह
सांचे सच्चिदानन्द में प्रेम ना सुधारी क्यों।
बिकल बिलोकत न हिय पीर मोचत हौ
ए हो दीनवन्धु दीन वन्धुता बिसारी क्यों?
ले चल वहाँ भुलावा दे कर
मेरे नाविक धीरे धीरे।
जिस निर्जन में सागर लहरी
अम्बर के कानों में गहरी।
निश्छल प्रेम-कथा कहती हो
तज कोलाहल की अवनी रे।
जहाँ साँझ सी जीवन छाया
ढीले अपनी कोमल काया।
नील नयन से ढुलकाती हो
ताराओं की पाँति घनीरे।