पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६११

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जिस गम्भीर मधुर छाया में
विश्व चित्रपट चल माया में।
विभुता पड़े दिखायी विभुसी
दुख सुख वाली सत्य बनो रे।
श्रम-विश्राम क्षितिज बेला से
जहाँ सृजन करते मेला से।
अमर जागरण उषा नयन से
विखराती हो ज्योति घनी रे।

२- पं० सुमित्रानंदन पन्त की गणना भी प्रसिद्ध छायावादी कवियों में है। उन्होंने दो तीन ग्रन्थ भी लिखे हैं, 'पल्लव' इन का सब से प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इनकी रचनायें एक अनूठापन लिये हुये हैं, जिनमें इनकी हृत्तंत्री बड़ी मधुरता से झंकृत होती है। इनकी अधिकतर कवितायें भाव-प्रधान हैं, उस में मार्मिकता भी पायी जाती है। जितने युवक छायावादी कवि हैं उनमें इनका प्रधान स्थान है, और वास्तव में ये हैं भी इस योग्य। इनकी कुछ रचनायें देखिये:-

।। सुख-दुख ।।

मुझको न चाहिये चिर सुख

चाहिये न रे अविरत दुख।
सुख दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन मे
यह जीवन हो परिपूरन।
फिर घन में ओझल हो शशि
फिर शशि से ओझल हो घन।