पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६१४

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करने की ओर आप की रुचि अभिनन्दनीय है। आप के दो ग्रंथ निकल चुके हैं और दोनों सुन्दर हैं। उनकी कुछ रचनायें देखियेः-

॥ वरदान ॥

मिले अधरों को वह मुसकान

जिसे देख सहृदय का अन्तर भर जावे भगवान।
नयनों को ऐसी चितवन दे जो करुणा छलकादे।
रो दें वीणापाणि कण्ठ को देना ऐसे गान।
मिले हृदय जिसकी धड़कन से मिली विश्वतंत्री हो।
न्योछावर होना सिखला दें देना ऐसे प्राण।
इस कवि को ऐसे अवरोहण आरोहण सिखलाना।
हों जिसके अनुरूप जगत के पतन और उत्थान ।
दे ऐसी तन्मयता जिसमें अपनापन खो बैठू।
फिर तुझको अपने में पाऊं दे ऐसे वरदान।

तुम्हारे अश्रु कणों का दान
नयनों को इस सजल भीख पर है सकरूण अभिमान।
यौवन की मधुमय दोपहरी में अपनापन भूला।
शतदल की पंखड़ियों से मिल विकसित होते प्राण।
आलोकित था अन्तरतर किसकी मुसकान विभा से।
सुला रहे थे चेतनता को थपकी देकर गान।
था निसर्ग प्याला सारी सुखमा मादक मदिरा थी।
मैं पीता था और पिलाता था कोई अनजान।
तु करुणामय करुणा में था ये आँखें पगली थीं।
तू रोदन में मैं विनोद में था विलीन भगवान।