पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६१८

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कल् कल् छल् छल् करती बोतल से उमड़े मदिरावाला।
अब कैसा बिलम्ब-

३-बाबू रामकुमार वर्म्मा एम० ए० ने थोड़े ही समय में छायावाद के क्षेत्र में अपना अच्छा नाम कर लिया। जैसा उनका कण्ठ मधुर है वैसी ही मधुर उनकी कविता भी है। कविता-पाठ के समय जैसा वे रस की वर्षा करते हैं वैसी ही रसमयी उनकी कविता भी है। इनका शब्द- चयन भी अच्छा है और भावानुकूल उसका प्रयोग करने में भी वे समर्थ हैं। जिस प्रकार की कविता उनकी होती है, वैसी कविताओं को वे छायावाद कहने को प्रस्तुत नहीं है। परन्तु प्रचलित परम्परानुसार उनकी कविता को भी मुझको छायावाद की कविता ही मानना पड़ा। उनकी कवितायें छायावाद न हों, जो हों, पर हैं हृदयग्राहणी। इनके कुछ पद्य देखिए:-

रूपराशि

यह प्रशान्त छाया।
सोती है शिशु-पल्लव के हिलने से कम्पन आया।
प्रेयसि शयन धरा पर करने में है स्वर्गोल्लास।
देखो छाया पड़ी हुई है मृत पल्लव के पास।
और तुम्हारे उर में जो है भाग्यवान वह हार।
कभी गिरेगा भूपर लेकर अपना सूखा भार।
आओ हम दोनों समीप बैठे दखें आकाश।
वे दोनों तारे देखो कितने कितने हैं पास।

उपसंहार

हिन्दी साहित्य का विकास किस प्रकार हुआ और कब कब वह किन किन रूपों में कैसे परिणत हुआ, मुझको यही प्रकट करना इष्ट था। यह यथासम्भव प्रकट किया गया। इतना ही नहीं, इस विषय में जितने