पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(६०७)

जाती है। रोज़मर्रा का अर्थ यह है कि जैसा आपस में बोलते-चालते हैं वैसा ही शब्दों का व्यवहार गद्य और पद्य में भी करें। यदि हम बोलते हैं 'आँखदेखी बात' तो आँखदेखी बात' ही लिखना चाहिये, 'आँख विलोकी' या 'आँख निहारी बात लिखना, संगत नहीं। बोलचाल है कि हमारा पांव दुख रहा है' यदि इसके स्थान पर हम लिखें कि 'हमारा पांव दुख पा रहा है' तो ऐसा लिखना उचित न होगा। इसी प्रकार मुहावरे के जितने वाक्य हैं वे उन्हीं शब्दों में परिमित हैं, जिन शब्दोंमें बोले जाते हैं। उनके शब्दों को बदलदेना और उसी मुहावरे में उस वाक्य को ग्रहण करना नियम-विरुद्ध है। मुहावरा है 'दाँत निकालना'। यदि हम 'दांत' के स्थान पर दसन या दंत प्रयोग कर देंगे तो यह प्रयोग नियमानुकूल न होगा। परंतु ऐसे प्रयोग किये जाते हैं। मेरा कथन यह है कि ऐसा होना उचित नहीं।

एक पक्ष वालों का यह सिद्धांत है कि व्रजभाषा के शब्द खड़ी बोलचाल की कविता में आने ही न चाहिये, उसकी क्रियाओं का प्रयोग तो किसी अवस्था में न होना चाहिये। दूसरे पक्ष के लोग कहते हैं कि व्रजभाषाके कोमल और मधुर शब्द अवश्य ले लिये जाँय और बिशेष अवस्थाओं में क्रिया भी ले ली जाय, परंतु तब जब उसको खड़ी बोली का रूप दे दिया जावे। आज कल की रचनाओं में दोनों प्रकार के प्रयोग मिलते हैं और उन लोगों को इस प्रकार का प्रयोग करते देखा जाता है जिनकी रचनायें प्रामाणिक मानी जाती हैं। इस भिन्नता के दूर होने की आवश्यकता है। मेरा पक्ष दूसरा है। परंतु मैं 'पत्ता' के स्थान पर 'पात', 'पुष्प' के स्थान पर 'पुहुप', 'हृदय' के स्थान पर हिय हिया' अथवा 'रिदै', 'आंखें' के स्थान पर 'अँखियां', समय' के स्थान पर 'समै', 'पवन' के स्थान पर 'पौन', 'भवन' के स्थान पर 'भौन', 'गमन' के स्थान पर 'गौन' 'नयन' के स्थान पर 'नैन', 'वचन' के स्थान पर 'बैन' या 'बयन' , 'मदन' के स्थान पर 'मैन' या 'मयन', 'यम' के स्थान पर 'जम', 'यज्ञ' के स्थान पर जग्य', 'योग' के स्थान पर 'जोग' आदि लिखना अच्छा नहीं समझता। इस लिये कि इससे शब्द अधिक बिगड़ते हैं और उस रूप में सामने आते हैं जो खड़ी बोली के नियम के विरुद्ध है॥