पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६२८

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के लिये मानव मस्तिष्क तरह तरह के व्याख्यानों में प्रवृत्त होता है! ये व्याख्यान जीवन के व्यवसायिक अङ्ग से इतना अधिक सम्पर्क रखते हैं कि वे काव्य के विषय हो ही नहीं सकते। वे सफलतापूर्वक जब चलेंगे तब उसी ढंग से जिस ढंग से वे बातचीत में व्यक्त होते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि बातचीत में वे गद्य रूप ही में प्रकट होते हैं और इस कारण गद्य हो में उनको अभिव्यक्ति का एक विशेष संस्कार हो जाता है, जिससे पाठक को अपने विचार हृदयंगम कराने में लेखक को सुविधा होती है। उक्त व्याख्यान, राजनीति शास्त्र अर्थशास्त्र समाजशास्त्र आदि विषयों से सम्बन्ध रखते हैं। काल पाकर व्यक्तियों, परिवारों जातियों का इतिहास लिखा जाता है, जिसमें उन बातों की चर्चा की जाती है जो याद रह कर भविष्य में आनेवाली पीढ़ियों का किसी भ्रम प्रमाद आदि से बचा सकती क्रमशः इतिहास, भूगोल, ज्योतिष, गणित यात्रा, आदि विषयों की ओर भी ध्यान जाता है और गद्य ही में इनके लिखे जाने की विशेष उप-युक्तता होने के कारण क्रमशः गद्य का विकास हो जाता है।

मानव समाज के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कहानियाँ पद्य ही में लिखी जाती हैं। ये कहानियाँ प्रायः वहीं होती हैं, जो बच्चों की कल्पना पर प्रभाव डालती हैं। किंतु ज्यों २ समाज विकसित होता है त्यों त्यों बच्चों को भी प्रवृत्ति सरल बोलचाल की भाषा में कहानी सुनने और पढ़़ने की हो जाती है। विकसित समाज में व्यक्तियों को अधिकार और‌कर्त्तव्य का दैनिक जीवन को छोटी छोटी घटनाओं के क्षेत्र में सामंजस्य करने को इतनी प्रवल आवश्यकता खड़ी हो जाती है कि कहानी का सहारा‌ लिये बिना काम चलना कठिन हो जाता है। यह कहानी भी पद्य में किसी भांति लिखी ही नहीं जा सकती, उसका रूप और प्रकार हो कुछ ऐसा विभिन्न होता है कि पद्य के ढाँचे को वह स्वीकार ही नहीं कर सकती।

समाज का एवं व्यक्ति का जीवन किस आदर्श के साँचे में ढाला जाय—इस प्रश्न की आकर्षकता भी कभी घट नहीं सकती। मृत्यु क्या है? मनुष्य उससे क्यों डरता है? उसका इस भय से किस प्रकार छुटकारा हो सकता है? किस प्रकार का जीवन स्वीकार करने से मनुष्य को अधिक से