पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६३०

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प्रस्तुत साहित्य के पठन-पाठन एवं आलोचना-प्रत्यालोचना से भी गद्य-साहित्य का निर्माण होता है। हिन्दी भाषा-भाषी प्रदेश के शासकों ने अपनी प्रजा के कल्याणार्थ हिन्दी के विद्यालय स्थापित करने की ओर भी कभी ध्यान नहीं दिया। सभी साहित्यों में कहानी और उपन्यास सहज ही बहुत अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर लेते हैं। किन्तु जब तक इनके प्रचार के साधन उपलब्ध न हों तब तक इनका पूरा प्रभाव पड़ना कठिन हो जाता है। प्रचार को कठिनाइयों के कारण यह स्पष्ट था कि कहानियों और उपन्यासों के लेखकों को जनता से कोई सहायता नहीं मिल सकती थी। रहे राजे महाराजे ओर कोई कोई हिन्दी कवियों के संरक्षक मुसल्मान राज-कुमार और नवाबगण सो उन्हें शृंगारिक अथवा अन्य कविताओं से ही इतना अवकाश नहीं था कि वे कहानी और उपन्यास रचना को प्रोत्साहन दे कर उसकी और समाज की रुचि को बढ़ाते। कहानी और उपन्यास का विकास न होने का एक अन्य कारण भी है और वह यह कि अँगरेज़ी साहित्य के साथ सम्पर्क होने के पहले हिन्दी लेखकों के सम्मुख कहानी और उपन्यास-रचना का वह आदर्श उपस्थित नहीं था जो समाज को दैनिक समस्याओं को हल करने की ओर विशेष ध्यान देता है, जो कुप्रथाओं पर प्रहार कर के नवीन संस्थाओं और नवीन विचारशैलियों को रचनात्मक दिशा में अग्रसर करता है। संस्कृत के 'कादम्बरी' और 'दशकुमार चरित्र' नामक उपन्यासों से यथेष्ट उपयोगों आधार नहीं मिल सकता था और न 'हितोपदेश' और 'पंचतंत्र' को कहानियाँ विशेष रूप से मार्ग-प्रदर्शक हो सकती थीं। ऐसी अवस्था में हिन्दी गद्य के विकास में विलम्ब होना कोई आश्चर्य जनक बात नहीं॥

 

दूसरा प्रकरण।
आदिकाल।

जैसे राजपूत नरेशों के दरबार में हिन्दी पद्य का आदिम विकास हुआ वैसे ही गद्य का उद्भव भी वहीं हुआ। बारहवीं ई॰ शताब्दी के बहुत पहले