सामग्री की आवश्यकता है. वह इस समय सर्वथा प्राप्त नहीं होती। इसलिये इनके चरित्र लिखने के लिये दूसरे ग्रंथों और कहावतों का संग्रह करना पड़ा है। सुनते हैं वेणीमाधव दास कृत एक गोसाई चरित्र नामक ग्रंथ है, जो गोस्वामी जी के समय में ही रचा गया है, परंतु वह भी इस समय नहीं मिलता है। इस कारण भक्तमाल तथा दूसरे ग्रंथों के आधार पर कुछ लिखते हैं।" "एक समय एक संतने कहा गम का अवतार तो द्वादश कला का है, कृष्ण का सोलह कला का है. सो तुम सोलह कलावतार को क्यों नहीं भजते । तुलसीदास जी यह सुनते ही दो घड़ोतक प्रेममें मग्न हो गये । और फिर बोले हम तो आजतक रामचन्द्र को कौशल राजकुमार जानते थे. पर तुमने तो बारह कला का ईश्वर का अवतार बता कर हमारी भक्ति और भी दृढ़ कर दी, अब उनको केसे त्याग दू। यह सुन अनन्य उपासी जान साधु ने उन के चरण पकड़ लिये । यद्यपि गोस्वामी जी कह सकते थे कि सूर्य बारह कला. और चन्द्र सोलह में पूर्ण होता है. यह उसी का उपलक्ष्य है. पर उन्होंने वहो उत्तर देना उचित जाना ।।
३-साहित्याचार्य पं. अम्बिकादत्त व्यास का वर्णन मैं पहले कर आया हूं। वे जैसे धर्माचार्य हैं. वैसे ही साहित्याचार्य । उनकी अनेक उपाधियां हैं। वे भारतेन्दु जी के समकालीन थे । पं० प्रताप नारायण मिश्र, प्रेमघन, पं० गाविन्द नारायण मिश्र और पं० बालकृष्ण भट्ट के समान उनका स्थान भी उस समय के माहित्य सेवियों में प्रधान है, अतएव उन्हों के साथ उनका वर्णन भी होना चाहिये था। परन्तु धम क्षेत्र के उनके कार्य साहित्य क्षेत्र से भी अधिक हैं. विहार प्रान्त में धर्म के साथ उन्होंने हिन्दी का प्रचार भी बड़ी तत्परता के साथ किया, इसलिये मुझको प्रचार काल में ही उन्हें लाना पड़ा । वे विचित्र बुद्धि के मनुष्य थे। उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में रह कर उस समय अवतार कारिको अवतार मीमांसा आदि जितने ग्रंथों को रचना संस्कृत में की उनकी उस समय बड़ी प्रशंसा हुई थी। उनका मूर्ति पूजा नामक हिन्दी ग्रंथ भी इस विषय में अपूर्व है । विहार प्रान्त में उन्हों ने जिस प्रकार धर्म दुन्दुभी का निनाद किया, वह बड़ा ही व्या- पक और प्रभावशाली था। उन्होंने गद्य के कई बड़े बड़े ग्रंथ लिवे, वे