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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६८

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और अन्तर्वेद में कन्नौजी भाषा का प्रचलन है, यह भाषा उत्तर में नैपाल की तराई तक फैली हुई है. इसमें और ब्रजभाषा में बहुत थोड़ा अन्तर है। बुन्देलखण्ड की बोली बुन्देली है, जो दक्षिणमें नर्वदा की तराई तक पहुंचती है, यह भाषा भी ब्रजभाषा से बहुत मिलती है।

पश्चिमी हिन्दी का एक रूप वह शुद्ध हिन्दी भाषा है, जो मेरठ और दिल्ली के आसपास बोली जाती है, इसको हिन्दुस्तानी भी कहते हैं। गद्य हिन्दी साहित्य और उर्दू रचनाओं का आधार आजकल यही भाषा है, आजकल यह भाषा बहुत उन्नत अवस्था में है, और दिन दिन इसकी उन्नति हो रही है। इसका पद्यभाग उर्दू सम्बन्धी तो बहुत बड़ा है, परन्तु हिन्दीमें भी आजकल उसका विस्तार वढ़ता जाता है। अधिकांश हिन्दी भाषा की कवितायें आजकल इसी भाषामें हो रही हैं, इसको खड़ी बोली कहा जाता है।

बांगड़ जिस प्रान्त में बोली जाती है, उस प्रान्त का नाम बांगड़ा है, इसी सूत्र से उसका यह नामकरण हुआ है । हरियाना प्रान्तमें इसे हरियानी कहते हैं-करनाटक में यह जाटू कही जाती है, क्योंकि जाटों की वह बोलचाल की भाषा है।

कन्नौजी में साहित्य का अभाव है, इसलिये दिन दिन यह भाषा क्षीण हो रही है, और उसका स्थान दूसरी बोलियाँ ग्रहण कर रही हैं। वुन्देल- खण्डी भाषा में कुछ साहित्य है, परन्तु व्रजभाषा का ही उसपर अधिकार देखा जाता है। साहित्य की दृष्टि से इन सब में व्रजभाषा का प्राधान्य है, जो कि शौरसेनी की प्रतिनिधि है।

'पंजाबी' हिन्दीभापा के उत्तर-पश्चिम ओर है, और इसका क्षेत्र पंजाब है। पूर्वीय पंजाब में हिन्दी है, और पश्चिमी पंजाब में लहँडा, जो बहिरंग भाषा है। पंजाबी के वर्ण राजपुताने के महाजनी और काश्मीर के शारदा से मिलते जुलते हैं। इसमें तीन ही स्वरवर्ण हैं, व्यञ्जनवर्ण भी स्थान स्थान पर कई ढंग से लिखे जाते हैं। गुरु अंगदजी ने इसका संशोधन ईस्वी सोलहवें शतक में किया, उसी का परिणाम 'गुरुमुखी' अक्षर हैं। अमृतसर