पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६८१

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से कुछ कुछ चकचकाहट आरंभ की है और ठंढी ठंढी हवा चल रही है। इसी समय नींद खुली और आंख खोलते ही चट नारायण का नाम ले, कुछ आवश्यक कृत्यों से निपट जै जै करते मन्दिर की ओर दौड़ पड़े ।"

   ४-फुल्लौर जिला जालंधर निवासी पं० श्रद्धारामजी पंजाब प्रान्त के प्रसिद्ध हिन्दू धर्म प्रचारक और हिन्दी भाषा के कई ग्रंथों के रचयिता हैं । जिन में 'सत्यामृत प्रवाह' अधिक ख्याति प्राप्त है । मरने के समय उनके मुख से हठात् यह निकला था कि हिन्दी भाषा के दो बड़े लेखक थे, एक पंजाब में और एक बनारस में, अब केवल एक ही रह जायेगा।" इससे स्पष्ट है कि उनका स्वर्गवास बाबू हरिश्चन्द्र के पहले ही हुआ, क्योंकि जिस शेष लेखक की ओर उनका संकेत है, वे उक्त बाबूसाहब ही हैं। ऐसी अवस्था में प्रचार काल में उनकी चर्चा उचित नहीं । परन्तु मैं पहले ही लिख चुका हूं कि यह प्रचार काल उनके जीवन से ही प्रारम्भ होता है, इसलिये और इस कारण कि पं० जी हिन्दी के प्रसिद्ध प्रचारक थे, उनकी चर्चा प्रचार-काल में ही की गई । पण्डितजी ने जितने ग्रथ लिखे हैं, वे बड़े उपादेय हैं उनका 'आत्मचिकित्सा' नामक ग्रंथ भी बड़ा उत्तम है । वे अनीश्वरवादी थे, परन्तु हिन्दू शास्त्रोंपर उनकी बड़ी श्रद्धा थी और सामाजिक समस्त नियमों का पालन वे बड़ी तत्परता से करते थे। हिन्दूधर्म में उनकी बड़ी ममता थी, और उसकी रक्षा के लिये वे सदा कटिवद्ध रहते थे। जिस समय काश्मीर के मुसल्मानों को हिन्दू बनाने की इच्छा काश्मीर नरेश की हुई, उस समय पं० जी ने इस विषय में उन्हें बहुत उत्साहित किया। किन्तु दुःख है कि हिन्दुओं के दुर्भाग्य और विशेष कारणों से मनकि बीत मन ही  में  रह गई। पण्डित जी ने भाग्यवती नामक एक उपन्यास भी लिखा है जो बड़ा ही सुन्दर है । उन्होंने अपना जीवनचरित स्वयं १४०० पृष्ठों में लिखा था, परन्तु अब वह प्राप्त नहीं होता। कहा जाता है, छपने के पहले ही गुम हो गया। उनके गद्य का कुछ अंश देखियेः-

वह भी ईश्वर कृत नहीं, किन्तु समुद्र और अन्य नदोनालों का जल सूर्य की किरणद्वारा उदान वायु के वेग से ऊपर खैचा जाता है और सूर्य