पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६६६)


                  (६६९)

भाषा में लि खे गये हैं। स्वामी श्रद्धानंद ने चिरकाल तक सत्यधर्म प्रचा- रंक' का सम्पादन किया था और कतिपय धार्मिक पुस्तकें भी लिखी थीं। उनके ग्रंथ भी उपादेय हैं और सामयिकता की दृष्टि से उनमें ऐसी बातें लिखी गयी हैं जो हिन्दू जाति को जाग्रत् करती हैं। आप लोग देश विदेशों में जाते थे और वहां पर आर्य समाज के साथ हिन्दी भाषा का प्रचार मो करते थे। पं० तुलसीगम और पं० गणपति शास्त्रो का शास्त्र ज्ञान और वैदिक विषयों की अभिज्ञता प्रशंसनीय थी। दोनों सज्जनों की विचार शैली गहन और युक्ति मूलक होती थी। पं० तुलसीराम एक मासिक पत्र भी निकालते थे. वे उसमें शास्त्रीय विषयों को मीमांसा करते रहते थे। उनके भी अधिकांश ग्रंथ हिन्दीी भाषा में ही लिखे गये हैं और इस कारण हिन्दी भाषा के प्रचार में उनका उद्योग भी प्रशंसनीय था। पं० गणपति शास्त्रो की भाषण शक्ति जेसो अपूर्व थी वैसी ही विषय-विवे- चन को योग्यता भी उनमें थो। उनके लेख गंभीर होते थे, उनके ग्रंथ भी उनके पांडित्य के प्रमाण हैं। पं० गजाराम ने उपनिषदादि अनेक प्राचीन ग्रंथों की टीका हिन्दी भाषा में लिखी है. और कुछ स्वतंत्र ग्रंथों को भी रचना की है। श्री युत आर्य मुनि की कृतियां भो मूल्यवान हैं जो अधिकांश हिन्दी भाषा में हैं. उनसे हिन्दी प्रचार की तत्कालिक प्रवृत्ति में अच्छी सहायता प्राप्त हुई है।

   ५ इन काल में अयोध्यानिवासी कुछ महात्माओं और विद्वानों ने भो हिन्दू  धर्म. हिन्दू जाति और  हिन्दी भाषा की बहुत बड़ी संवा की थी इनमें से स्वामो युगलानन्द शरण का नाम  विशेष उल्लेखयोग्य है। स्वामी युगलानन्द शरण  संस्कृत. अग्बो एवं फ़ारसी के बड़े विद्वान् थे, हिन्दो-भाषा के तो एक प्रकार  से आचाय्य हो  थे । वे हिन्दी  के सत्कवि थे । उन्होंने गम लोला सम्बन्धी पद्यक  सुन्दर प्रन्थ बनाये हैं, उनमें धार्मिकभाव भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। उनकी जितनी रचनायें हैं, सब बड़ी सरस और  मधुर हैं, उनमें हृदय ग्राहिता की मात्रा भी अधिक है। उन्होंने कुछ गद्य ग्रन्थों की भी रचना की  है और कतिपय ग्रन्थ की टोकायं भी लिखी हैं। उनकी  शिष्य  परम्पग में भी  उनके भाव गृहीत होते आये हैं. इसी लिये वे लोग