पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६८४

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भी हिन्दी सेवा में वैसे ही निरत देखे जाते हैं। बाबा रामचरण दास ने इसो काल में एक ऐसी विस्तृत रामायण की टीका लिखी है जो अद्वितीय कही जा सकती है। इसमें उन्होंने वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण आदि के आधार से गो० तुलसी दास को रामायण को चौपाइयों का ऐसा विशद अर्थ किया है. जिसको भूरि भूरि प्रशंसा करने पर भी तृप्ति नहीं होती। इस ग्रंथ से भी तत्कालिक हिन्दू धर्म को अच्छा उत्तेजन मिला है, हिन्दी भाषा के भाण्डार को तो जगमगाता रत्न ही मिल गया है। बाबा रघुनाथ दास की रचनायें भी बहुमूल्य हैं, उनका अवधी भाषा .. में लिखा गया'विश्राम सागर' अधिक प्रसिद्ध है। इसी प्रकार के कुछ और हिन्दी हितषी महात्माओं और विद्वानों के नाम बताये जा सकते हैं, किन्तु व्यर्थ बाहुल्य होगा।

  ८-इसी काल में तुलसी साहब ने घटरामायण नामक एक विशाल ग्रन्थ को रचना पद्य में को, जो अपने ढङ्ग का अनूठा है। राधा स्वामी मत की स्थापना भी इसो काल में हुई। उस संप्रदाय वालों की भी कुछ ऐसी रचनायें इस काल की हैं. जिनसे हिन्दो माषा के प्रचार में कुछ न कुछ सहायता अवश्य प्राप्त हुई। पं० ब्रह्मशङ्कर मिश्र का रचा हुआ ग्रन्थ प्रमाण में उपस्थित किया जा सकता है, यह ग्रंथ अपने ढङ्ग का उत्तम है । उसमें जो बातें वर्णन की गयी हैं वे कई एक सिद्धान्त को बातों पर अच्छा प्रकाश डालती हैं।
  ९- श्री युक्त राधाचरण गोस्वामी प्रसिद्ध साहित्य सेवियों में हैं, आप भी बाबू हरिश्चन्द्र के समकालीन सज्जनों में हैं। आप को गणना भी उस समय के उन्हीं लोगों में है जो उन के सच्चे सहयोगियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। पण्डित बाल कृष्ण भट्ट, पं० प्रतापनारायण, पं० अम्बिका दत्त ब्यास आदि के समान ही साहित्य सेवियों में आप की भी गणना है। आप ने भारतेन्दु नामक एक मासिक पत्रिका उनको कोर्ति की स्मृतिमें निकाली थी जो बहुत दिनों तक चलता रहा। आप बड़े मार्मिक लेखक थे। आप की लेख मालायें बड़े आदर से पढ़ी जाती थीं। आप स्वतंत्र विचार के