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कि बादल उमड़ रहे हैं, चीलें नीचे उतर रही हैं, तबीअत भुरभुरा उठी । इधर भंग उधर घटा, बहार में बहार। इतने में वायु का वेग बढ़ा, चीले अदृश्य हुई अंधेग छाया, बूदें गिरने लगी, साथ ही तड़ तड़ धड़ धड़ होने लगो। देखो ओले गिर रहे हैं। ओले थमे, कुछ वर्षा हुई. बूटी तयार हुई, बमभोला कहकर शर्मा जी ने एक लोटा भर चढ़ाई।" उनके कुछ पद्य देखिये:-
आ जा नवल वसंत सकल ऋतुओं में प्यारी। तेरा शुभागमन सुन फूली केसर क्यारी । सरसों तुझको देख रही है आंख उठाये। गेंदे ले ले फूल खड़े हैं सजे सजाये । आस कर रहे हैं टेसू तेरे दर्शन की । फूल फूल दिखलाते हैं गति अपने मन की। पेड़ बुलाते हैं तुझको टहनियां हिला के। बड़े प्रेम से टेर रहे हैं हाथ उठा के ।
१३-लाला श्रीनिवास दास इस काल के अच्छे लेखकों में थे। उन्होंने परीक्षा गुरु नामक एक मौलिक उपन्यास लिखा था। तता संब-रण'. संयोगिता स्वयंवर' और 'रणधीर प्रेम मोहिनी' नामक तीन नाटकों को भी ग्चना की थी। ये तीनों नाटक अच्छे हैं. परन्तु ग्णधोर प्रेम मोहिनी सबसे सुन्दर है, इसका संस्कृत अनुवाद पं० विजयानन्द त्रिपाठी ने किया था। उन्होंने 'सदादर्श' नामक मासिक पत्र भी निकाला था । 'परीक्षा गुरु' की भाषा अच्छी है. इसमें चलतापन भी पाया जाता है. उस का एक अंश देखिये:-
जैसे अन्न प्राणाधार है, परन्तु अति भोजन में गेग उत्पन्न होता है.लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “देखिये परोपकार की इच्छा अत्यन्त उपकारी है, परन्तु हद से आगे बढ़ाने पर वह भी फ़जूल खर्ची समझी जायेगी।