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और अपने कुटुम्ब परिवारादि का सुख नष्ट हो जायेगा। जो आलसी अधवा अधर्मियों को सहायता की, तो उससे संसार में आलस्य और पाप की वृद्धि होगी।"
१४-राजकुमार ठाकुर जगमोहन सिंह मध्य प्रदेश विजय राघव गढ़के रहने वाले थे, मध्य प्रदेश में उन्होंने उस समय हिन्दी प्रचार का अच्छा उद्योग किया था। उन्होंने एक हो ग्रंथ लिखा है। श्यामा स्वप्न'परन्तु वह अपने ढंग का अनूठा है। उसमें प्राकृतिक दृश्यों का स्थान स्थान पर सुन्दर चित्रण है। उन्होंने अपनी भाषा में पं० बदरी नारायण की साहित्यिक भाषा का अनुकरण किया है' परन्तु उनके वाक्य अधिक लम्बे हो गये हैं और वाक्य के भीतर वाक्य खण्ड आकर उसको जटिल बना देते हैं। फिर भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उन्होंने जिस प्रकार प्राकृत दृश्यों का वर्णन किया है. वह संस्कृत कवियों के गंभोर निरीक्षण का स्मरण दिलाता है-
उनके गद्य का एक अंश देखियेः
मैं कहां तक इस सुन्दर देश का वर्णन करूँ ? जहां की निर्झरिणी-,जिन के तीर वानीरसे भरे, मदकल कूजित विहंगमों से शोभित हैं, जिन जिन के तीर वानीरसे भरे, मदकल कूजित विहंगमों से शोभित हैं, जिन के मूल से स्वच्छ और शीतल जलधारा बहती है और जिनके किनारे के श्याम जम्बू के निकुंज फल भार से नमित जनाते हैं-शब्दायमान होकर झरती है। जहाँ के शल्लकी वृक्षों की छाल में हाथी अपना बदन रगड़ रगड़ खुजली मिटाते हैं और उनमें से निकला क्षीर बन के सीतल समीर को सुरभित करता है। मंजुवंजुल को लता और नोल निचुल के निकुंज जिनके पत्ते ऐसे सघन, जो सूर्य को किरणों को भी नहीं निकलने देते- इस नदी के तट पर शोभित हैं।"
१५-पंडित विनायकराव ने भी इस समय मध्य प्रदेश में हिन्दी प्रचार का बहुत बड़ा कार्य किया, आप गद्य पद्य दोनों सुन्दर लिखते थे और अपने विद्यावल से राजा और प्रजा दोनों से आहत थे। आप की अधि-कांश पुस्तकों का प्रचार उस प्रदेश के हाई स्कूलों और पाठशालाओं में