पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६९५

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 "रोहतास गढ़ किले के अन्दर राजमहल को ‘अटारियों पर चढ़ी हुई बहुत सी औरतें उस तरफ़ देख रही हैं, जिधर वोरेन्द्र सिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। कुअर कल्यान सिंह के गिरफ्तार हो जाने से किशोरो को एक तरह की निश्चिन्ती होगयी थी, क्यों कि ज़्यादे डर उसे अपनो शादी उसके साथ हो जाने का था, अपने मरने की उसे ज़रा भी परवाह न थी । हाँ, कुँअर इन्द्रजीत सिंह की याद वह एक सायत के लिये भी नहीं भुला सकती थी, जिनको तस्वीर उसके कलेजे में खिंची हुई थी। वीरेन्द्रसिंह की लड़ाई का हाल सुन उसे बड़ी खुशी हुई और वह भी अपनी अटारी पर चढ़ कर हसरत भरी निगाहों से उस तरफ़ देखने लगी जिधर वीरेन्द्र सिंह को फ़ौज पड़ी हुई थी।
   
   २१–अन्य भाषा से अपनी भाषा में ग्रंथों का अनुवाद करना भी भाषा के विस्तार का हेतु होता है, इस प्रचार काल में यह कार्य भी अधि-कता से हुआ। बंगभाषा के अनेक उपन्यास अनुवादित हो कर हिन्दी भाषा में गृहोत हुये । बाबू गदाधर सिंह ने 'कादम्बरी', 'बंग बिजेता' एवं'दुर्गेश नन्दिनी', का अनुवाद इसी समय किया। बाबू राधाकृष्णदास द्वारा स्वर्णलता' एवं 'मरता क्या न करता आदि कई उपन्यास अनुवादित हुये। बाबू रामदीनसिंह को इच्छा से पं० प्रतापनारायण मिश्र ने गजसिंह' आदि आठ दस उपन्यासों का अनुवाद किया। पं० गधाचरण गोस्वामी द्वारा'मृण्मयी', 'बिरजा' और 'जावित्री' का अनुवाद हुआ । ये अनुवाद बाबू हरिश्चन्द्र की देखा देखी हुये थे । पहले पहल आपने ही बंगभाषा के एक उपन्यास का अनुवाद कर के मार्ग प्रदर्शन किया था। इसके उपरान्त उस से अनेक उपन्यासों और ग्रंथों का अनुवाद हुआ। अनुवाद कर्ताओं में बाबू रामकृष्ण वर्मा, बाबू कार्तिक प्रसाद. बाबू गोपाल राम गहमर,बाबू उदित नारायण लाल गाज़ीपुरी आदि का नाम विशेष उल्लेख योग्य है। बाद को इंडियन प्रेस ने तो अनुवाद का ताँता लगा दिया। उसने कवीन्द्र रवीन्द्र के उत्तमोत्तम उपन्यासों के अनुवाद कगये और कुछ बँगला जीवन चरित्रों के भी॥