पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०

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पश्चिम में "मारवाड़ी" और मध्यप्रदेश में 'जयपुरी' का स्थान है। प्रत्येक को बहुतसी उपभाषायें हैं 'दो महत्वपूर्ण विशेषताओं के कारण 'मारवाड़ी' और 'जयपुरी में भेद है । 'जयपुरी' में सम्बन्धकारक का 'चिन्क हो' और क्रिया का पुराना धातु 'अछ' है। परन्तु 'मारवाड़ी' में सम्बन्धकारक का चिन्ह 'रो और "है" धातु है । गुजराती में कोई निर्देश योग्य अवान्तर भेद नहीं है, परन्तु उत्तरी गुजराती दक्षिणी गुजराती से मुख्य बातों में भेद रखती है।'राजस्थानो' का स्थान समस्त राजपुताना और उसके आसपास के कुछ विभाग हैं, और गुजराती का स्थान गुजरात और काठियावाड़ हैं, जिनका प्राचीन नाम सौराष्ट्र है।

राजस्थान की बोलियों में 'मारवाड़ी' और 'जयपुरी' ही ऐसी हैं, जिनमें साहित्य पाया जाता है, 'मारवाड़ी' का साहित्य प्राचीन ही नहीं विस्तृत भी है। जिस मारवाड़ी भाषा में कविता लिखी गई है उसे 'डिङ्गल' कहते हैं, इसमें चारणों की बड़ी ओजस्विनी रचनायें हैं । 'जयपुरी' में दादूदयाल और उनके शिष्यों की वाणियां हैं। और इस दृष्टि से उसका साहित्य भी मूल्यवान है। ब्रजभाषा की कविता को पिंगल कहते हैं, उससे भेद करने के लिये ही 'डिंगल' नाम की कल्पना हुई है।

गुजराती साहित्य बड़ा विस्तृत है, इसके निर्माण में जैन साधुओं ने भी हाथ बँटाया है, उन्हों ने धार्मिक ग्रन्थ ही नहीं लिखे, बड़े बड़े काव्यों की भी रचना की है, जिन्हें रासो अथवा रास कहते हैं । गुजराती साहित्य में पारसी और मुसलमानों की भी रचनायें मिलती हैं, परन्तु उनमें फ़ारसी, अरबी शब्दों का प्रयोग अधिकतर हुआ है। गुजराती भाषा का प्रतिष्ठित और अधिक प्रसिद्ध कवि नरसिंह मेहता हैं, जो ईस्वी पन्द्रहवें शतक में हुये हैं। ये जाति के नागर ब्राह्मण थे, इनकी रचना भावपूर्ण ही नहीं भक्तिमयी भी है।

मध्यदेशके पूर्व में पूर्वी हिन्दी' है । पूर्वीय हिन्दी पर मध्यदेशीय अथवा .पश्चिमी हिन्दी का प्रभाव बराबर पड़ता रहा है। साथ ही बाहरी भाषाओं के संसर्ग से भी वह नहीं बची, इसलिये उस पर दोनों का अधिकार देखा