पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०१

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देलूँगा कि पुस्तकें वैसी ही भाषा में लिखी जाती हैं, तो.मुझको फिर यह 'आशा होगो कि आगामी समय उस भाषा का अच्छा होगा, जिसको कि मैं तीस वर्ष से आनन्द के साथ पढ़ रहा हूँ।'

                              आप का सच्चा
                               जार्ज एक ग्रियर्सन
  परन्तु हिन्दी संसार इन ग्रंथों  की ओर  आकर्पित हो  कर  भी उसकी भाषा की ओर प्रवृत्त  नहीं हुआ. और न किसी ने ऐसी भाषा लिखने को  चेष्टा  की।  कारण  इसका  यही है. कि  समय  की आवश्यकताओं को देख कर संस्कृत गर्भित  भाषा लिखने की ओर ही उसकी प्रवृति है. सफलता भो उसको इसी में  मिल रही  है। अतएव यही शैली अनुमोदनीय है ! वर्तमान  काल कटि बद्ध  हो कर उसका अनुमोदन  भी  कर रहा  है ।।
छठा प्रकरण
                 वर्तमान काल
  यह देख कर सन्तोष होता है  कि  वर्तमान काल में हिन्दी  गद्य ने प्रशंसनीय उन्नति  की  है। विद्या के उन  समस्त विभागों से अब उसका सम्बन्ध हो  गया है. जो राष्ट्रीय जोवन को विकास की  ओर ले चलते हैं। देश के सार्वजनिक  जीवन ने  ज्या ज्या उन्नत स्वरूप ग्रहण किया त्या त्या हिन्दी गद्य को फलने फूटने  के लिये क्षेत्र प्राप्त होता गया । सरकार और जनता के पारस्परिक सहयोग ने भी हिन्दी गद्य को सुग- ठित और पुष्ट होने का  अवसर  दिया। उत्तरी  भारत तथा  मध्य प्रदेश के विश्वविद्यालयों में  देशी भाषा  की  शिक्षा का  प्रबंध  हो  जाने से हिन्दी काव्यों और  अन्य ग्रंथों के  सुव्यवस्थित पठन-पाठन का श्रीगणेश अभी थोड़े ही दिनों से हुआ है. किन्तु उसने  प्रचार-काल  में जन्म अथवा पोषण प्राप्त  पत्रों और पत्रिकाओं  का साहित्यिक  पद  अधिक उन्नत करके  गद्य-लेखन-शैली  को  बहुत  शीघ्र  सबल और  परिपक्क बनाने  में  उल्लेखनीय