पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०२

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सफलता प्राप्त कर ली है । समालोचना की प्राचीन शैली के साथ पाश्चात्य शैली ने कंधे से कंधा लगा कर हमें साहित्य के सवल और दुर्वल अंगों को परखने की कसौटियाँ बतलाई हैं, वे कसौटियाँ जिनकी अवहेलना नहीं की जा सकती। समालोचना का परिणाम भी देखने में आ रहा है, प्रायः लेखक गण अपनी रचनाओं के सम्बन्धमें अधिक सावधान हो गये हैं और बहुत परिश्रम तथा छानबीन के साथ ही ग्रन्थप्रणयन में प्रवृत्त होते हैं । अब हम यह दिखलावेंगे कि इस वर्तमान काल में हिन्दी भाषा के प्रत्येक विभागों में कितनी उन्नति हुई है और उनमें किस प्रकार समयानु- कूल परिवद्धन एवं परिवर्तन हो रहा है। सुविधा के लिये प्रत्येक विभागों का वर्णन अलग अलग किया जावेगा, जिसमें प्रत्येक विषय का स्पष्टतया निरूपण किया जा सके । हिन्दी का कार्य-क्षेत्र इस समय बहुत विस्तृत है ,और वह लगभग सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसार पा रहा है। इसलिये हिन्दी उन्नायको, सेवकों और ग्रन्थ-प्रणेताओं को संख्या भी बहुत अधिक है। सवका वर्णन किया जाना एक प्रकार से असम्भव है। इस लिये उल्लेख-योग्य कृतियों की ही चर्चा की जायगी. और उन्हीं हिन्दी-सेवा-निरत सजनों के विषय में कुछ लिखा जायगा, जिनमें कोई विशेषता है या जिन्होंने उसको उन्नत करने में कोई अंगुलि-निर्देश योग्य कार्य किया है , अथवा जिनके द्वारा हिन्दी भाषा विकास-क्षेत्र में अग्रसर हुई है । अब तक में कुछ अवतरण भी लेखकों अथवा ग्रन्थकारों की रचनाओं का देता आया हूँ, किन्तु इस प्रकरण में ऐसा करना ग्रंथ के व्यर्थ विस्तार का कारण होगा, क्योंकि इस प्रकार के गण्य मान्य विवुधों एवं प्रसिद्ध पुरुषों की संख्या भी थोड़ी न होगी ।।

                    (१)
         
साहित्य-विभाग (Literature)

आज कल हिन्दी साहित्य बहुत उन्नत दशा में है। दिन दिन उसकी वृद्धि हो रही है। किन्तु यह कहा जा सकता है कि जिसमें सामयिकता अधिक हो और जो देश और जाति के लिये अधिक उपकारक हों ऐसे ग्रंथ अभी थोड़े ही बने हैं। हाँ. भविष्य अवश्य आशापूर्ण है। विश्वास