पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७०५

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इतिहास लगातार लिखे जा रहे हैं। किन्तु इन सब तारक-मण्डल को ज्योति प्रदान करने वाला सूर्य उनका ग्रन्थ ही है। मिश्र बन्धुओं ने कुछ इतिहास प्रन्थ भी लिखे हैं। वे भो कम उपयोगी नहीं । पं० रमाशंकर शुक्ल एम० ए० ‘रसाल' ने एक वर्ष के भीतर ही दो प्रशंसनीय ग्रंथ प्रदान किये हैं। एक का नाम है 'अलंकारपीयूष' और दूसरेका नाम है हिन्दी साहित्य का इतिहास ।' ये दोनों ग्रंथ अपने ढंग के अपूर्व हैं। 'अलंकार पोयूष में प्राचीन संस्कृत ग्रंथों की शास्त्रार्थ- परम्परा का सुन्दर विवेचन उन्होंने जिस प्रकार किया है, वह हिन्दी-संसार के लिये एक दुर्लभ वस्तु है । उसमें उनकी प्रतिभा और विचार-शैली दोनों का विकास है । उनका हिन्दी साहित्य का इतिहास भी एक उल्लेखनीय और अभूतपूर्व ग्रंथ है। पं० रमाकान्त त्रिपाठी एम० ए० का हिन्दी-गद्य-मीमांसा' नामक ग्रंथ भी अपूर्व है। यह पहला ग्रंथ है जिसमें हिन्दीभाषा पर पाश्चात्य प्रणाली से विवेचन किया गया है। थोड़े समय में इस ग्रन्थ का आदर भी अधिक हुआ है, यह इसकी उपयोगिता और बहुमूल्यता का प्रमाण है। श्रीमान् सूर्यकान्त शास्त्री एम० ए० का हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास भी गहन विवेचना के लिये अपना प्रमाण आप है। पंजाब जैसे सुदूरवर्ती प्रान्त में रह कर भी आप ने हिन्दी के विषय में जिस मर्मज्ञता का परिचय दिया है वह अभिनन्दनीय है। उनका यह ग्रंथ हिन्दो भाण्डार की आदरणीय सम्पत्ति है। बाबू रमाशंकर श्रीवास्तव एम० ए० एल० एल० वी० का हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास भी उपयोगी ग्रन्थ है और परिश्रम से लिखा गया है । अंगरेजी स्कूलों में कोर्स में उसका गृहीत हो जाना इसका प्रमाण है। पं० जगन्नाथ मिश्र एम० ए० का हिन्दी गद्य-शैली का विकास' नामकग्रन्थ भी सुन्दर है। लेखक का पहला ग्रंथ होने पर भी प्रशंसा-योग्य है। 'हिन्दी काव्य में नवरस' नामक एक ध पं० बाबू रामबित्थरियाने और 'नवरस' नामक ग्रंथ वाबू गुलाब राय एम० ए० ने लिखा है। पहला ग्रंथ बहुत गवेषणा और विचार शीलता के साथ लिखा गया है। इस लिये वह बहुत उपयोगी बन गया है। दूसरा ग्रंथ छोटा है परंतु गुण में बड़ा है। बाबू साहब बड़े चिन्ताशील लेखक हैं, इस लिये