पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(५७)

जाता है । साधारणतः इसकी संज्ञाओं और विशेषणों का रूप पूर्व की वहिरंग भाषाओं से मिलता जुलता है, और क्रियाओं एवं धातुओं का रूप मध्यदेशीय हिन्दी से । पूर्वीय हिन्दी में तीन प्रधान भाषायें हैं । 'अवधी' 'वघेली' और 'छत्तीस गढ़ी'। अवधी को बैसवाड़ी भी कहते हैं. यह भाषा अवध के दक्षिण पश्चिम में बोली जाती है। कहा जाता है यह बैसवाड़ी राजपूतों की भाषा है । अवधी का दूसरा नाम 'कोशली' है। अवधी और बघेली में बहुत कम अन्तर है । छत्तीसगढ़ी पहाड़ी भाषा है, और अधिक स्वतंत्र है, उस पर कुछ उत्कल भाषा का प्रभाव भी पाया जाता है। यदि पश्चिमी हिन्दी की ब्रजभाषा भगवान् कृष्णचन्द्र की गुण गाथाओं से पूर्ण है, तो पूर्वी हिन्दी की अवधी भगवान रामचन्द्र के कीर्तिकलाप से उद्भासित है। यदि पश्चिमी हिन्दी के सर्वमान्य महाकवि प्रज्ञाचक्षु सूरदास जी हैं, तो पूर्वी हिन्दी के सर्वोच्च महाकवि गोस्वामी तुलसीदास हैं। यदि उन्होंने प्रेमसिद्धान्त की पराकाष्ठा अपनी रचनाओं में दिखलाई, तो इन्होंने भक्तिरस की वह धारा बहाई, जिससे समस्त हिन्दी संसार आप्लावित है। अवधी भाषा के मलिक मुहम्मद जायसी भी आदरणीय कवि हैं, उनका 'पद्मावत' अवधी भाषा का बहुमूल्य ग्रन्थ है, उसमें अधिकतर बोलचाल की भाषा का प्रयोग देखा जाता है, अवधी भाषा में कुछ और ग्रन्थ भी पाये जाते हैं, परन्तु उनमें कोई विशेषता नहीं है। कबीर साहब को भी अवधी भाषा का कवि माना जाता है, उन्होंने स्वयं लिखा है, 'बोली मेरी पुरुब की, परन्तु उनकी रचनाओं के देखने में यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती। उनके पद्यों की विचित्र भाषा है, उसमें किसी भाषा का वास्तव रूप नहीं दिखलाई देता। नागरी प्रचारिणी सभा से जो उनकी ग्रन्थावली निकली है,और जो उनके समय में लिखित पुस्तक के आधार से सम्पादित हुई है, उसमें पंजाबी भाषा का ढंग ही अधिक देखा जाता है । अवधी भाषा में साहित्य है, परन्तु ब्रजभापा के समान वह विस्तृत और विशाल नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास और कविवर सूरदास को छोड़कर हिन्दी संसार के जितने कवि और महाकवि हुये हैं, उन सबकी अधिक रचनायें ब्रजभाषामेंही हैं। एक से एक बड़े कवियों का सहारा पाकर पांच सौ वर्ष में ब्रजभाषाका