पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(६९९)

कुछ स्त्रियों की भी। परंतु वे प्राचीन ढंग से लिखी गयो हैं। फिर भी उनमें रोचकता और सरसता मिलती है और उनके पाठसे आनंद आता हैं। पं० ज्योतिप्रसाद मिश्र निर्मल ने स्त्री-कवि कौमुदी' नाम से हिन्दी स्त्रीक-वयित्रियों को एक जीवनी निकाली है। वह भी अच्छी है। पं० बनारसी दास चतुर्वेदी मे स्व० कविरत्र पं० सत्यनारायण को अच्छी जीवनी लिखी है। उसमें उन्हों ने जोवन-चरित लिखने की जिस शैली से काम लिया है वह प्रशंसनीय है। उनके सरल और भोले हृदय का विकास इस जीवनी में अच्छा देखा जाता है। वे एक उत्साही पुरुप हैं और उनके उत्साह का ही परिणाम यह जीवनी है. नहीं तो उसका लिखा जाना असंभव था।

इतिहास।

जोवन चरित और उपन्यास इन दोनों से भी इतिहास का स्थान बहुत ऊँचा है। जीवत-चरित का सम्बन्ध किसी एक महापुरुष अथवा उसके कुटुम्ब के कुछ प्राणियों या उससे सम्बन्ध रखने वाले कुछ विशेष मनुष्यों से होता है। उपन्यास की सोमा भो परिमित है वह भी कतिपय व्यक्ति विशेषों पर अवलम्बित होता है, चाहे वे काल्पनिक हा अथवा ऐतिहासिक । परंतु इतिहास का सम्बन्ध एक, देश एक गज्य, किंवा एक समाज अथवा किसी जाति-विशेप से होता है। उसमें नाना सांसारिक घटनाओं के संघटन और मानव-समाज के पारम्परिक संघष से उत्पन्न विभिन्न प्रकार के कार्य कलाप मामने आते हैं, जो मानव जीवन के अनेक ऐसे आदर्श उपस्थित करते हैं. जिनसे सांसारिकता के विभिन्न प्रत्यक्ष प्रमाण सम्मुग्व आजाते हैं। इस लिये नमको उपादयता बहुत अधिक बढ़ जाती है और यही कारण है कि इतिहास साहित्य का एक प्रधान अंग है। हिन्दी संसार में इसके आचाय्य गय बहादर पं० गौरीशंकर हीग.चंद ओझा हैं। आप ऐस उच्च कोटि के इतिहास लेग्यक हैं कि उनको समस्त हिन्दी संसार मुक्त कण्ट हो कर सर्वोत्तम इतिहासकार मानता है। उन्होंने अपनी गवेषणाओं से बड़े बड़े ऐतिहासिकों को चकित कर दिया