पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१४

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है। शिलालेखों, मुद्राओं एवं अनेक प्राचीन पुस्तकों के आधार से ऐसो ऐसो ऐतिहासिक बातों को वे प्रकाश में लाये हैं जो बिलकुल अंधकार में पड़ी थों, उनको इन कार्यो के लिये बड़े बड़े पुरस्कार मिले हैं। सरकार ने भी राय बहादुर की उपाधि देकर उनकी प्रतिष्ठा की है। हिन्दी संसार ने भी साहित्य-सम्मेलन के द्वारा उनको १२००) का मंगला प्रसाद पारितोषिक दिया है। इन सब बातों पर दृष्टि रखकर विचार करने से यह ज्ञात हो जाता है कि आपका इतिहासकारों में कितना उच्च स्थान है । आपने जितने ग्रंथ बनाये हैं वे सब बहुमूल्य हैं और तरह तरह की गवे- षगाओं से पूर्ण हैं। आपके उपरान्त इतिहासकारों में पंडित विश्वेश्वरनाथ रेऊ का स्थान है। आप उनके शिष्य हैं और योग्य शिष्य हैं। आप का भो ऐतिहासिक ज्ञान बहुत बढ़ा हुआ है। श्रीयुत सत्यकेतु विद्यालंकार ने 'मौर्य साम्राज्य का इतिहास' नामक एक अच्छा इतिहास ग्रंथ लिखा है. उसके लिये १२०० । पुरस्कार भी उन्हों ने साहित्य सम्मेलन द्वारा पाया है। आपका यह इतिहास गवेपणापूर्ण, प्रशंसनीय और उल्लेख योग्य है । श्रीयुत जयचंद विद्यालंकार ने 'भारतवप का इतिहास' नामक एक बड़ा ग्रंथ लिखा है। यह ग्रंथ अभो प्रकाशित नहीं हुआ है, किन्तु मैं जानता हूं कि यह उच्च कोटि का इतिहास है और इसमें ऐसी अनेक बातों पर प्रकाश डाला गया है, जो पाश्चात्य लेखकों को लेखनी द्वारा अन्धकार में पड़ी थीं। अध्यापक गमदेव का लिखा हुआ भारत का इतिहास' और गोपाल दामोदर तामसकर रचित 'मगठों का उत्कर्ष' नामक इतिहास भी प्रशंसनीय और उत्तम हैं। ये दोनों ग्रंथ परिश्रम से लिखे गये हैं और उनके द्वारा अनेक तथ्यों का उद्घाटन हुआ है। पं० सोमेश्वरदत्त शुक्ल वी० ए० ने कुछ इतिहास ग्रंथ लिखे हैं और श्रीयुत ग्घुकुल तिलक एम० ए० ने 'इंगलेण्ड का 'इतिहास' बनाया है। इन दोनों ग्रंथों की भी प्रशंसा है। पंडित मन्नन द्विवेदो गजपुरी का बनाया हुआ मुसल्मानी राज्य का इतिहास' नामक ग्रंथ भी सुन्दर है और बड़ा योग्यता से लिखा गया है । भाषा इस ग्रंथ की उर्दू मिश्रित है. परंतु उसमें ओज और प्रवाह है। लेखक की मनस्विता इस ग्रंथ में स्थल स्थल पर झलकती दृष्टिगत होतो है ।