पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१६

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निराकरणके लिये यत्नवान हैं । इस दिशामें बहुत बड़ा कार्य कवीन्द्र रवीन्द्र कर रहे हैं, वे संसार भर में भ्रमण कर यह बतला रहे हैं. धर्म क्या है। वे कह रहे हैं कि जबतक आय धर्म का अवलम्बन यथा रोति न किया जायगा उस समय तक न तो संसार में शान्ति होगी और न उसकी दस्यु वृत्ति का निवारण होगा। दस्युवृत्ति का अर्थ परस्वापहरण है। मारतवर्ष में भी अनेक विद्वान् धर्म रक्षा के लिये यत्नवान हैं और सत्य का प्रचार कर रहे हैं। प्रचार का एक अंग ग्रंथ-रचना है, जिसका सम्बन्ध साहित्य से है। मेरा विषय यही है. इस लिये मैं यह बतलाऊँगा कि वत्तमान काल में कितने सदाशय पुरुषों ने इस कार्य को अपने हाथ में लेकर उत्तमता पूर्वक किया है। मै समझता हूं. इस दिशा में कार्य करने वालों में भारतधर्ममहामण्डल के स्वामी दयानन्द का नाम विशेष उल्लेख योग्य है। उनका सत्यार्थ-विवेक नामक ग्रंथ जा कई खंडों में लिखा गया है. वास्तव में आदर्श धर्म-ग्रंथ है। आपने और भी धर्म-सम्बन्धी प्रथ लिखे हैं और आजतक इस विषय में यत्नवान हैं। आप जैसे संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान हैं वैसे ही अंगरेजा के भी। आप के ग्रथों की विशेषता यह है कि आप तात्विक विषय को लेकर उनकी मीमांसा पाश्चात्य प्रणालो और वेदिक सिद्धान्तों के आधार से उपपत्ति पूर्वक करते हैं और फिर बतलाते हैं कि सत्य और धर्म क्या है। आप के ग्रंथ अवलोकनीय हैं और इस योग्य हैं कि उनका यथेष्ट प्रचार हो। स्वर्गीय पं० भीमसेन जो के पुत्र पं० ब्रह्मदेव शर्मा भी इस विषय में बड़े उद्योगशील है. उनका ब्राह्मण सर्वस्व' नामक पत्र इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य कर रहा है। उन्होंने धर्म सन्बन्धो कई उत्तमोत्तम ग्रंथ भो निकाले हैं, जो पठनीय और मनन योग्य हैं। वास्तव में आप बड़े बाप के बेटे हैं। प्रसिद्ध महोपदेशक कविरत्न पण्डित अखिलानन्द का अबिश्राम शील महत्तामयो लेखनी भी अपने कार्य में रत है, वह भी एक से एक अच्छे धार्मिक प्रथ लिखते जा रहे हैं और आज भी धर्म रक्षा के लिये पूर्ववत वद्ध परिकर हैं । आपके जितने ग्रंथ हैं. सब वहुचता और बहुदर्शिता से पूर्ण हैं, उनमें आपके पाण्डित्य का अद्भुत विकास देखा जाता है। लखनऊ के नारायण स्वामी द्वारा महर्षि