पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७२१

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नामक हास्यरस की एक अच्छो पुस्तक लिखो है। उसमें भी हँसी की मात्रा यथेष्ट है। उन्हों ने कटाक्ष और व्यंग से अधिकतर काम लिया है, जिससे उनको अपने उद्देश्य में अच्छी सफलता मिली है । पंडित ईश्वरी प्रसाद शर्मा बड़े प्रसिद्ध हास्य रस के लेखक थे। उन्हों ने इस विषय में कई ग्रंथों की रचना की है। उन्हों ने अनेक बँगला और अंगरेज़ीके उपन्यासों का अनुवाद किया है और कुछ नीति-ग्रंथ भी लिखे हैं। वे बहुत अच्छे पत्र-सम्पादक भी थे। उन्हों ने बहुत काल तक स्वयं अपना हिन्दो मनोरंजन' नामक मासिक पत्र निकाला। वे चिरकाल तक हिन्दू-पंच के भी सम्पादक रहे। उनके समय में यह पत्र इतना समुन्नत हुआ कि फिर उसको वैसा सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ। वे बहुत अच्छे समालोचक भी थे।

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मण-वृत्तान्त।

'चातुर्य्य मुलानि भवन्ति पञ्च में देशाटन भी है। वास्तव में सांसारिक अनेक अनुभव ऐसे हैं जो विना देशाटन किये प्राप्त नहीं होते । इसीलिये भ्रमण-वृत्तान्तों के लिखने की प्रणाली है। अनेक देशों की सैर घर बैठे कग्ना भ्रमण-वृत्तान्तों के आधार से होता है, उनके पढ़ने से भ्रमणकर्ता के अनेक अर्जित ज्ञानों का अनुभव भी होता है । इसलिये साहित्य का एक अंग वह भी है । मासिकपत्रों में प्रायः इस प्रकार के भ्रमण-वृत्तान्त निकला करते हैं। उनसे कितना मनोरंजन होता है, यह अविदित नहीं । ज्ञानवृद्धि में भी उनसे बहुत कुछ सहायता प्राप्त होती है । हिन्दी में, जहाँ तक मुझको ज्ञात है. इस विषय के दो बड़े ग्रंथ लिखे गये हैं। एक बाबू सत्य- नारायण सिंह का लिखा हुआ तीर्थयात्रा नामक प्रथ जो कई खंडों में लिखा गया है। इस ग्रंथ में भारतवर्ष के समस्त तीर्थों का सुन्दर और विशद वर्णन है, यात्रा-सम्बन्धी अनेक बातें भी उसमें अभिज्ञता के लिये लिखी गयी हैं। ग्रंथ की भाषा अच्छी और वोधगम्य है। कहीं कहीं प्राकृत विषयों का चित्रण भी सुन्दर है। दूसरी पुस्तक बाबू शिवप्रसाद गुप्त की लिखी हुई है। उसका नाम पृथ्वी परिक्रमा है । यह पुस्तक भापा,