पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७५

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और 'नयनम्' के स्थान पर नयने आदि । यह चिन्ह वर्तमान बँगला गद्य में भी पाया जाता है।

बँगला भाषा इस समय आर्य परिवार की समस्त भाषाओं से उन्नत है। उसका साहित्य भाण्डार सर्व विषयों से परिपूर्ण है । प्रत्येक विषय के ग्रन्थों की रचना उसमें हुई है, और होती जा रही है। विश्वकवि श्री युत रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं में उसको बहुत बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। जैसे कृतविद्य लेखक इस समय बँगला भाषा में हैं, भारतीय किसी भाषा में नहीं हैं। बँगला के साहित्य में मानिकचन्द के गीत सब से प्राचीन हैं। चण्डी दास और कीर्तिवास भी बहुत बड़े कवि हो गये हैं। आधुनिक कवि और लेखकों में बाबू बंकिमचन्द्र चटर्जी और माइकेल मधुसूदनदत्त आदि ने भी बड़ी कीर्ति पाई है ।

आसाम में बोलीजानेवाली भापा आसामी कहलाती है, यह आय्यपरिवारकी एक भाषा है। इसदेश में रहनेवाली बहुतसी जातियाँ तिब्बती वर्मन भाषा में बातचीत करती हैं। मगध की मागधी प्राकृत का पता तीन धाराओं से लगाया जा सकता है। पहली धारा है दक्षिण में बोलीजानेवाली उड़िया, दूसरी है दक्षिण और पूर्व की पश्चिमीय और पूर्वीय बँगला, तीसरी उत्तर पूर्व की आसामी । बँगला भाषा ही अधिक उत्तर पूर्व में पहुंच कर आमामी बन गई है । यद्यपि कि आसामी तिब्बती वर्मन भाषा के प्रभाव और संसर्ग के कारण व्याकरण और उच्चारण दोनों में बँगला से बहुत भिन्नता रखती है, परन्तु बँगला से परिवर्तित होकर वर्तमान रूप धारण करने के प्रमाण उसमें बहुत अधिक मौजूद हैं । इस का साहित्य भी उन्नत है, और इसमें बहुत से ऐतिहासिक ग्रन्थ हैं, जिनको आसामी 'बूरजी, कहते हैं। कुछ काल तक पादरियों की चेष्टा से आसामी भाषा अपने मुख्यरूप में बँगला से अधिक उन्नत हो गई थी, पर अब फिर उसमें संस्कृत शब्दों का अधिक प्रवेश हो रहा है ।

आसाम को ही संस्कृत में कामरूप कहा गया है, बंगाली उस 'ओशोम. कहते हैं, इसी 'ओशोम' से पहले 'ओशोमी' और बाद को आसामी उसकी भाषा का नाम पड़ा। इसमें दूसरे प्रकार के साहित्य भी हैं । आसामी भापा