पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७७

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कर वहां अपना राज्य स्थापित किया। उनके प्रभाव से ही जनता में उनका धर्म और भाषा भी फैली । कुछ कालोपरान्त इस प्रदेश में लगभग सभी हिन्दू धर्मावलम्बी हो गये. और सभी की भापा थोड़े परिवर्तन से राजस्थानी बन गई । मैं पहले लिख आया हूं कि गुजरातो और राजस्थानी में थोड़ा ही अन्तर है, यहा बात यहां के भाषा में भी पाई जाती है।

उत्तरी पश्चिमीय समूहकी भाषा लहन्दी और सिन्धी भी आर्य परिवारकी है । लहन्दा पश्चिमी पंजाब को भाषा है, उसको पश्चिमीय पंजाबी, जाटकी, उच्ची और हिन्दकी भी कहते हैं। लहन्दा का शब्दार्थ है, सूर्य का डूबना, अथवा पश्चिम । जटकी का अर्थ है जाटों की भाषा । उच्ची का अर्थ है उच्च नगर की भाषा । 'हिन्दकी, हिन्दुओं की भाषा है, यह पश्चिमी भाग में बोली जाती है, यहां पश्तो बोलनेवाले मुसल्मान रहते हैं ।

लहन्दा को तीन बोलियां है। दक्षिणीय या मुलतानी, उत्तरीय पूर्वी या पोठवारी, उत्तरीय पश्चिमी या धन्नी । लहन्दा में ग्राम्यगीतके अतिरिक्त और कोई साहित्य नहीं है । ईम्वी सोलहवं शतककी लिखी हुई गुरु नानक देवकी एक जन्म साखी ( जीवन चरित्र ) और कुछ साधारण कवितायें जहां तहां मिल जाती हैं । मुसल्मानों को कुछ रचनाय पोठहारी बोली में पाई जाती हैं । परन्तु उसको लोग पंजाबी भाषा में लिखी गई मानते हैं ।

सिन्धी सिन्ध की भाषा है, दक्षिणमें यह समुद्र तक फैली हुई है, उत्तरमें आकर यह लइन्द्रा में मिल जाती है। सिन्ध में प्राचीन काल का ब्राचड देश था, प्राकृत वैयाकरणाने यहां ब्राचड़ अपभ्रंश और ब्राचड़ पशाची का होना स्वीकार किया है। सिन्धी की पांच भापायें हैं. १- विचोली, सिरादकी, लाड़ी, थरेली, ओर कच्छी। विचोली भाषा मध्य सिंध की है, साहित्यिक यही भाषा है, और इसी में साहित्य है। सिग्दकी- विचोली का एक रूप है वास्तव में उसकी भिन्न सत्ता नहीं है। केवल थोड़ा बहुत ऊचारण का अन्तर है। सिंधी सगदकी को सब में शुद्ध समझते हैं। लाड़ी लाड़ प्रदेश की भाषा है - इसमें भद्दापन है । लाड़ का शब्दार्थ है ढालुवां । बिचोली और इसमें यह अन्तर है कि इसमें बहुत से प्राचीन रूप पाये जाते हैं,