पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/८७

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को यहां इसलिये उठाया है, कि जिस से इस सिद्धान्त पर प्रकाश पड़ सके कि किस प्रकार गुजरात, राजस्थान और पूर्वीय पंजाब में अन्तरङ्ग भाषा का प्रचार हुआ। अब बिचारना यह है कि अन्तरंग और वहिरंग भाषाओं में कौनसी ऐशी विभिन्नतायें हैं, जो एक को दूसरी से अलग करती हैं। डाक्टर चटर्जी कहते हैं---

"डाक्टर ग्रियर्सन ने जिन कारणों के आधार से अन्तरंग और वहिरंग भाषाओं को माना है, वे प्रधानतः भाषा सम्बन्धी हैं। विचार करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि पश्चिमी हिन्दी तथा अन्य आर्य भाषाओं में कुछ विषमतायें हैं। उन्हों ने देखा कि ये विषमतायें जो कि सब 'वहिरंग' भाषाओं में एक ही हैं, प्राचीन आर्यभाषाओं के दोनों विभागों अर्थात् अन्तरंग और बहिरंग भाषाओं के भेद से ही उत्पन्न हुई हैं। केवल इतना ही नहीं कि वहिरंग भाषाओं की पारस्परिक समानता उन्हीं बातों में है, जिनमें अन्तरंग भाषा से भिन्नता है, वरन् डार्डिक भाषायें प्रायः उन्हीं कुल विशेषताओं से भगे हैं, जिनसे कि वहिरंग भाषायें परिपूर्ण हैं। इस लिये अन्तरंग से उसकी भिन्नता और स्पष्ट हो जाती है" । १

कुछ मुख्य २ भिन्नतायें लिखी जाती हैं

"इन दोनों शाखाओं की भाषाओं के उच्चारण में अन्तर है । जिन वर्णों का उच्चारण सिसकार के साथ करना पड़ता है, उनको अन्तरंग भाषावाले बहुत कड़ी आवाज़ से बोलते हैं, यहां तक कि वह दन्त्य स हो जाता है। परन्तु वहिरंग भाषावाले ऐसा नहीं करते। इसी से मध्यदेश वालों के 'कोस' शब्द को सिन्धवालों ने 'कोह' कर दिया। पूर्व की ओर बंगाल में यह 'स' श' हो जाता है। आसाम में गिरते गिरते 'स' की आवाज़ 'च' की सी हो गई है। काश्मीर में तो उसकी कड़ी आवाज़ बिल्कुल जाती रही है, वहाँ भी अन्तरंग भाषा का 'स' बिगड़ कर 'ह' हो गया है।

| Dr. S. K. Chatterjee: The origin and development of the • Bengali Language (S29)p.31.