पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/९१

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कर्ता बहुवचन-घोड़े (-घोड़ेह घोड़हि=तृतीया बहुवचन 'मैं' के समान प्रथमा में प्रयुज्यमान )।

करण-आंखों (=अक्खिहिं, खुसरूवाको आंखों दीठा-अमीर खुसरो) कानों ( कण्णहिं )

करण-( कर्ता )-मैं ( ढोला मइ तुहु वारिआ ) मैं सुन्यो साहिबिन . आँषिकीन—पृथ्वी ) तँ, मैं ने, तैं ने ( दुहरी विभक्ति) .

अपादान-एकवचन-भुक्खा (=भूखसे -- बांगडू ) भूखन, भूखों (ब्रज-भाषा, ( कनौजी)

अधिकरण - एकवचन-घरे-आगे-हिंडोरे ( बिहारी लाल ) माथे (सूरदास)

दूसरे वहिरंग मानी गई पश्चिमी पंजाबी में भी पश्चिमी हिन्दी के समान सहायक शब्दों का प्रयोग होता है। घोड़ेदा ( घोड़े का ) घोड़े ने घोड़े नू इत्यादि। इससे यह निष्कर्ष निकला, कि बँगला आदि में पश्चिमी हिन्दी से बढ़ कर कुछ संयोगावस्थापन्न रूपावली नहीं मिलती । अतः उसके कारण दोनों में भेद मानना अयुक्त है"। १

डाकर चटर्जी ने इस विषय पर बहुत कुछ लिखा है, और अपने सिद्धान्त के प्रतिपादन में बड़ा पाण्डित्य प्रदर्शन किया है। खेद है कि मैं उनके सम्पूर्ण विवेचन को स्थान की संकीर्णता के कारण यहां नहीं उठा सकता। परन्तु विवेचना के अन्तिम निर्णय को लिख देना चाहता हूँ, वह यह है और मैं उससे पूर्णतया सहमत हूं--

“पुरातत्व और मानव इतिहास के आधार पर 'वहिरंग' आर्योका 'अन्तरंग' आर्यों के चारों ओर वस जाने की बात को पुष्ट करने की चेष्ठा उसी प्रकार अप्रमाणित रह जाती है, जैसे भाषासम्बन्धी सिद्धान्त के सहारे से निश्चित की हुई बातें । २

"The attempt to establish on anthropometrical and etheological

ground is a ring of "Outer" Aryandom Round an "inner" core is as unconvincing as that on Iniguistic grounds."

१ देखो-'हिन्दी भाषा और साहित्य' पृ० १५१, १५२ ।

२ देखो-'ओरिजन एंड डिवलेपमेन्ट आफ बंगाली लांगवेज पृ० ३३ (३१)