पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१२०

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गंभीर वाणियाँ (वैशेषिक और न्याय शास्त्र) महेद्रशास्त्री से समझों—न कि रट लो, काशीजी में रहकर परम प्रसिद्ध खंडदेव पंडित से जैमिनीय शास्त्र (पूर्वमीमांसा) का अध्ययन किया और शेष कृष्णोपनामक वीरेश्वर पंडित से पतंजलि की निर्मल उक्तियाँ (महाभाष्य) प्राप्त की, इस तरह जो सब विद्याओं के निधान थे, जिनकी लीला से पाषाण (मेरे जैसे जड़) से भी अमृत (सरस कविता) झर रहा है, उन लक्ष्मी–(मेरी माता) पति अथवा विष्णुरूप पेरुभट्ट नानक पूज्य पितृदेव को मैं अभिवादन करता हूँ।


प्रबंध-प्रशंसा

निमग्नेन क्लेशेर्मननजलधेरन्तरुदरं
मयोन्नोतो लोके ललितरसगङ्गाधरमणिः।
हरन्नन्तर्धान्तं हृदयमधिरूढो गुणवता-
मलङ्कारान् सर्वानपि गलितगर्वान् रचयतु॥

अति-कलेस ते मनन-जलधि के उदर-मझि दै गोत धनी।
मैं जग में कीन्ही प्रकटित यह "रसगंगाधर" ललित-मनी॥
सो हरि अधकार अंतर को हिय शोभित ह्वै गुनि-गन के।
सकल अलंकारन के, करि दै गलित, गरब उत्तमपन के॥

मैंने मननरूपी जलधि के उदर के अंदर न कि बाहर ही बाहर, बड़े क्लेशों के साथ—न कि मनमौजीपन से, गोता