पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१४७

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यहाँ "धीरे धीरे हटा रही है। इस कथन से रति नामक स्थायी भाव संलक्ष्यक्रम होकर व्यक्त हो रहा है। स्थायिभावादिक भी संलक्ष्यक्रम व्यग्य होते है, यह आगे सिद्ध किया जायगा। काव्य के इसी (उत्तमोत्तम) भेद को "ध्वनिकाव्य" कहा जाता है।

अप्पय दीक्षित के विवेचन का खंडन

यहाँ पर, अप्पय दीक्षित (जो अलंकारशास्त्र के सुप्रसिद्ध विद्वान थे) ने "चित्रमीमांसा" नामक ग्रंथ मे जो एक ध्वनिकाव्य के उदाहरण का विवेचन किया है, उसका खंडन पंडितराज ने, लिखा है। अच्छा, आप वह भी सुन लीजिए-

वह उदाहरण यों है। किसी नायिका ने एक दूती को अपने नायक के पास भेजा कि वह उसे बुला लावे; पर वह स्वयं ही उससे रमण करके लौटी, और लगी इधर उधर की बाते बनाने । विदग्ध नायिका को यह बात बहुत खटकी, पर वह इस बात को स्पष्ट कैसे कह सकती थी, अतः उसने उससे यों कहा-

निःशेषच्युतचदनं स्तनतटं निर्मृष्टरागोऽधरो
नेत्रे दूरमनञ्जने पुलकिता तन्वी तवयं तनुः।
मिथ्यावादिनि दूति! वान्धवजनस्याज्ञातपीडागमे
वापीं स्नातुमितो गताऽसि न पुनस्तस्याऽधमस्याऽन्तिकम्॥

हे झूठ बोलनेवाली दूती! तू अपने बांधव (नायिका) के ऊपर जो बीत रही है-उसे जो दुःख हो रहा है उसे